लोकसभा के उपनेता एवं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बुधवार को सदन के नवनिर्वाचित सदस्यों को अहंकार से दूर रहने और हमेशा मर्यादा का पालन करने की नसीहत देते हुए उनका आह्वान किया कि वे राजनीति के खोये हुए वास्तविक अर्थ को पुनर्स्थापित करें।
श्री सिंह ने नई दिल्ली में संसदीय अध्ययन एवं प्रशिक्षण ब्यूरो द्वारा 17वीं लोकसभा में पहली बार निर्वाचित होने वाले सांसदों के प्रबोधन कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि उनके लिए यह अत्यंत गौरव की बात है कि वे विश्व के सबसे विशालतम लोकतंत्र की संसदीय परंपरा का अंग बने हैं। उन्होंने नये सांसदों को संसदीय परंपराओं, नियमों, प्रक्रियाओं एवं संविधान की पूरी जानकारी से लैस होने की नसीहत दी और कहा कि संसद की गरिमा सांसदों के आचरण से बनती है तथा इसके लिए मर्यादा का पालन अनिवार्य है। किसी भी कीमत पर मर्यादा नहीं छोड़ी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर कभी सदन में किसी विषय पर गरमागरम चर्चा हो या तर्क वितर्क हो जाये तो बोलने में इतनी सावधानी अवश्य बरतनी चाहिए जिससे सामने वाले के जज़्बात को ठेस ना पहुंचे।
उन्होंने सांसदों को गांधी, अंबेडकर, लोहिया, दीनदयाल उपाध्याय और कार्ल मार्क्स को पढ़ने और रामायण महाभारत आदि ग्रंथों के अध्ययन का सुझाव दिया और कहा कि सांसद अपने धर्मग्रंथों के अलावा दूसरे के धर्म के बारे में भी जानें और उनके ग्रंथ पढ़ें। उन्होंने कहा कि एक बार सांसद बनने के बाद दोबारा चुनाव में जीतना कठिन हो जाता है और इसके लिए सांसदों को ध्यान रखना चाहिए कि वे अपनी कथनी एवं करनी में अंतर नहीं रखें। इसके लिए वे लोगों के मिथ्या वादे नहीं करें और न ही झूठे आश्वासन दें। इससे विश्वसनीयता के संकट से बचा जा सकता है।
रक्षा मंत्री ने सांसदों से अहंकार से दूर रहने की नसीहत देते हुए कहा कि राजनीति का वास्तविक अर्थ होता है कि शासन को सन्मार्ग पर ले जायें। उन्होंने कहा कि हम सब संकल्प लेते हैं कि राजनीति शब्द के खोये अर्थ को पुनर्स्थापित करेंगे। उन्होंने सांसदों से शून्यकाल एवं प्रश्नकाल का उपयोग अपनी विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए करने और क्षेत्र की जनता की आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए करने का आह्वान किया।