देश के संविधान एवं जनतंत्र को बचाने के लिए समाजवादियों को अपने महानायकों से प्रेरणा लेकर नये सिरे से एकजुट होकर संघर्ष करना पड़ेगा। शुक्रवार से प्रारम्भ हुए समाजवादी समागम के उद्घाटन सत्र में वक्ताओं ने एक मत होकर इस विचार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई। यह समागम दो दिन चलेगा, जिसमें देश के 13 राज्यों के समाजवादी भाग ले रहे हैं।
तीन सत्रों में चले इस समागम में वर्तमान चुनौतियां एवं समाजवादी विकल्प, समाजवादी घोषणापत्र, श्रमिक आंदोलन के समक्ष चुनौतियां, युवाओं के समक्ष शिक्षा और रोजगार की चुनौती, साम्प्रदायिकता, सामाजिक न्याय और राष्ट्रीय एकता, पर्यावरण संकट, जन स्वास्थ्य, वैकल्पिक विकास की अवधारणा, चुनाव सुधार और महिला हिंसा, यौन उत्पीड़न और नर -नारी समता पर वक्ताओं ने अपने विचार रखे। जेएनयू के प्रो.एवं समाजविज्ञानी डॉ आनंद कुमार ने कहा कि समाजवाद की सही मायने में परिभाषा संपत्ति का सामाजिक स्वामित्व, गरीबी और गैरबराबरी को खत्म करना, गरीबों-वंचितों-दलितों-पिछड़ों-आदिवासियों के हितों के लिए लड़ना है। उन्होंने कहा कि रोजगार के अधिकार को राष्ट्रीय मान्यता देना चाहिए। साथ ही उन्होंने इस बात पर जोर किया की महात्मा गांधी ने आज़ादी के आंदोलन में संस्था और संगठन को बनाने और मजबूत करने का काम किया और हमें भी इस काम को प्राथमिकता पर अपने हाथ में लेना चाहिए।
उद्घाटन सत्र में स्वागत भाषण देते हुए समाजवादी रामशंकर सिंह ने कहा कि समाजवादी विचार और सिद्धांत आज भी उत्कृष्ट एवं सर्वमान्य हैं लेकिन इनके प्रचार-प्रसार के लिये सबको अपनी-अपनी जगह पर डटकर काम करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि पिछले तीन दशक में समाजवाद के नाम पर सत्ता में पहुँचे लोगों ने परिवारवाद, जातिवाद और वंशवाद के कारण इस सुंदर विचार की एक विकृत छवि बना दी है। इस छवि को सुधारना समय की जरूरत है, रमाशंकर सिंह ने पर्यावरण एवं हरियाली के मुद्दे को समाजवादियों के कार्यक्रम में शामिल करने की जरूरत बताते हुए कहा कि युवाओं को समाजवाद के सिद्धांत से परिचित करने की आवश्यकता है।