राष्ट्रपति चुनाव : नीतीश ने क्यों मारी पलटी, डर गए क्या?
लालू-राबड़ी के घर छापा, शिवसेना में तोड़फोड़ और राहुल गांधी से मैराथन पूछताछ के साए में राष्ट्रपति चुनाव हो रहा है। नीतीश ने क्यों मारी पलटी, डर गए क्या?
कुमार अनिल
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार किसी भी गठबंधन में रहें, पर अपनी स्वतंत्रता (स्वायत्तता) बनाए रखने के लिए जाने जाते रहे हैं। इसके लिए राष्ट्रपति चुनाव को वे प्लेटफॉर्म की तरह इस्तेमाल करते रहे हैं। 2012 में वे एनडीए गठबंधन के मुख्यमंत्री थे, लेकिन उन्होंने यूपीए के प्रणब मुखर्जी को समर्थन दिया था। फिर 2017 में वे यूपीए के घटक राजद के साथ थे, तब उन्होंने यूपीए के बजाय एनडीए के रामनाथ कोविंद को समर्थन दिया था। तब इसके दो अर्थ निकाले गए थे। नीतीश कुमार एक गठबंधन में रहते हुए दूसरे गठबंधन से भी संबंध का एक सूत्र रखते थे कि पता नहीं, कल जरूरत पड़ जाए। एक दूसरा अर्थ यह हो सकता है कि नीतीश किसी भी गठबंधन में रहें, पर अपनी स्वतंत्रता (स्वायत्तता) बनाए रखने के लिए ऐसा करते हैं कि उनके मोल-तोल की ताकत बनी रहे और बड़े दल अनावश्यक दबाव नहीं बनाएं।
अब इस बार क्या हो गया, क्यों नीतीश कुमार ने स्वतंत्रता वाला पैटर्न बदल कर पूर्ण सहयोगी वाला स्टैंड लिया। क्या उनकी कोई मजबूरी है या वे हवा का रुख देखकर पलट गए हैं। क्यों उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के साथ जाने की घोषणा की, क्यों द्रौपदी मुर्मू को समर्थन का एलान किया? यहां ध्यान देने की बात है कि जब उन्होंने तेजस्वी के साथ नजदीकियां बढ़ाईं, तो लालू परिवार पर सीबीआई का छापा पड़ गया। आज तो भाजपा और भी आक्रामक है। महाराष्ट्र में विपक्ष की सरकार संकट में है। वहां शिवसैनिक विधायकों को तोड़ने के पीछे किसकी ताकत है, यह बताने की जरूरत नहीं है। और सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी से ईडी की चार दिनों से पूछताछ हो रही है। चर्चा उनकी गिरफ्तारी को लेकर भी है। साफ है यह वाजपेयी-आडवाणी वाली भाजपा नहीं है।
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