नीतीश को समझने में मांझी की तरह चूक गये RCP
नौकरशाही डॉट कॉम के एडिटर इर्शादुल हक अपने कॉलम हक की बात में बता रहे हैं कि RCP Singh, जीतन राम मांझी की तरह नीतीश कुमार को समझने में चूक गये.
जनता दल युनाइटेड के निवर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष RCP ने केंद्री मंत्री बनने के बाद जो पहला महत्वपूर्ण बयान दिया था वह था- “मैं पार्टी अध्यक्ष और मंत्री दोनों ही जिम्मेदारियों को एक साथ निभाने में बखूबी सक्षम हूं”.
RCP Singh के इस बयान का सिर्फ और सिर्फ एक ही अर्थ है- वह केंद्रीय मंत्री के साथ जनता दल युनाइटेड के अध्यक्ष दोनों पदों पर बने रहना चाहते थे.
अब नीतीश कुमार के एक पुराने बयान पर गौर करें. पिछले वर्ष उनसे पूछा गया था कि अब पार्टी कौन संभालेगा? उन्होंने बेलाग लपेट जवाब दिया था “आरसीपी बाबू”.
लेकिन अचानक परिस्थितियां बदल गयीं. आरसीपी सिंह Janta Dal United के अध्यक्ष बने और बमुश्किल आठ महीने में निवर्तमान भी हो गये. जनता दल यू के गठन से आज तक आरसीपी सिंह सबसे छोटी अवधि के अध्यक्ष के रूप में कलेंडर में दर्ज हो गये.
क्या अब BJP से टकराव के मूड में है JDU
जब पिछले वर्ष नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को पार्टी का अध्यक्ष बनाया था तो यकीनन उनके या खुद आरसीपी के दिमाग के किसी कोने में यह बात नहीं रही होगी कि निकट भविष्य में उन्हें अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ेगा.
ऊपर दर्ज बातों से यह स्पष्ट था कि नीतीश यह मान चुके थे कि आरसीपी सिंह बतौर अध्यक्ष लम्बी पारी खलेंगे. जहां वह नीतीश के विश्वास पात्र थे वहीं वह उनके स्वजातीय भी हैं. नीतीश कुमार 1999 में रेल मंत्री बने थे. तब आरसीपी सिंह यूपी कैडर के आईएएस अफसर थे, जिन्हें नीतीश ने अपने मंत्रालय में बुला लिया. 2005 में जब नीतीश मुख्यमंत्री बने तब फिर से आरसीपी सिंह उनके सचिव की भूमिका में आ गये. गोया नीतीश कुमार के साथ काम करने का आरसीपी के पास करीब ढ़ाई दशक का अनुभव है. इन वर्षों में आरसीपी ने नीतीश कुमार के विश्वास को बखूबी जीता. तभी तो समय से पहले आईएएस पद से रिटायरमेंट दिलवा कर उन्हें राज्सभा का मेम्बर बनवा दिया. और इस तरह उन्हें पार्टी की सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी तक सौंप दी.
Nitish ने RCP की जगह Lallan Singh को इन छह कारणों से बनाया अध्यक्ष
लेकिन महज आठ महीने में अचानक क्या हुआ कि नीतीश कुमार ने उन्हें झटके में अध्यक्ष पद से हटने पर मजबूर कर दिया?
इस सवाल का जवाब 2019 की गर्मियों में नरेंद्र मोदी की कैबिनेट गठन की घोषणा में छिपा है. तब नरेंद्र मोदी ने जदयू को एक कैबिनेट मंत्री का पद देने की बात कही थी. नीतीश इसके लिए राजी नहीं थे. उधर आरसीपी सिंह की महत्वकांक्षा उफान मार रही थी. वह हर हाल में मंत्री बनना चाहते थे. वह कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ लेने दिल्ली पहुंच गये. उनके समर्थक भी पटना से दिल्ली में डेरा जमा चुके थे. लेकिन अचानक नीतीश कुमार ने फैसला किया कि एक मंत्रिपद स्वीकार नहीं किया जा सकता. इस फैसले के बाद आरसीपी का सपना धरा का धरा रह गया. फिर 2021 में कैबिनेट विस्तार का फैसाल मोदी सरकार ने लिया. फिर वही शर्त थी- एक मत्री पद.
नीतीश की अग्निपरीक्षा में फेल RCP
2019 और 2021 का फर्क यह था कि तब तक आरसीपी सिंह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुके थे. लिहाजा मंत्रिपद की संख्या या कौन मंत्री बनेगा, इस बात का फैसला आरसीपी सिंह को लेना था. नीतीश बड़ी खामोशी से आरसीपी सिंह की अग्निपरीक्षा लेने का इंतजार कर रहे थे. उधर पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद आरसीपी खुद की शक्ति को तोल नहीं सके और न ही नीतीश कुमार की खामोशी को पढ़ सके. वह नीतीश कुमार को समझ पाने में नाकाम रहे.
नतीजा सामने है.
आरसीपी ने जीतन राम मांझी प्रकरण से सबक लिया होता तो आज हालात कुछ और होते. नीतीश कुमार बयानों के बजाये एक्शन को अधिक तरजीह देते हैं. उन्होंने 2014 में भाजपा से अलग हो कर लोकसभा चुनाव लड़ के बुरी तरह हारने के बाद रातों रात जीतम राम मांझी को सीएम बना दिया था. इस उम्मीद से कि मांझी ( Jitan Ram Manjhi) उनके वफादार बने रहेंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मांझी की राजनीतिक महत्वकांक्षा जागी और अपनी लाइन पर चल निकले. नतीजा यह हुआ कि मांझी को नीतीश ने किनारा लगा दिया.
आज नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह ( RCP Singh) को दूसरा मांझी बनने से पहले किनारा लगा दिया. भविष्य में नीतीश अगर सियासी रूप से शक्तिशाली बने रहे तो आरसीपी को और भी किनारा लगा सकते हैं.