‘सिटिजेन अगेंस्ट हेट’ और ‘मिसाल’ ने अपने अध्ययन के सनसनीखेज दावा किया है कि बिहार में रामनवमी के दौरान फैले साम्प्रदायिक तांडव के पीछे संगठित साजिश थी और इस मामले में अनेक स्थानों पर प्रशासन का भी समर्थन था.
गौरतलब है कि रामनवमी के अवसर पर मार्च में बिहार के नवादा, नालंदा, सम्सतीपुर, भागलपुर, औरंगाबाद, दरभंगा समेंत 10 जिलों में साम्प्रदायिक तांडव मचाया गया. इस दौरान अल्पसंख्यक समुदाय के पचास से ज्यादा दुकानों को आग लगा दी गयी. दर्जनों लोग जख्मी हुए थे.
यह अध्ययन रिपोर्ट पूर्व आईएएस अफसर सज्जाद हसन के नेतृत्व में मानवाधिकार कार्यकर्ता सबिता, जाने माने पत्रकार नासिरुद्दीन हैदर खान, पत्रकार निवेदिता, सामाजिक कार्यकर्ता इबरार रजा, नदीम अली खान की टीम ने तैयार की है.
‘सिटिजेन अगेंस्ट हेट’ और ‘मिसाल’ नामक सामाजिक संगठनों ने बीते 11 अप्रैल से 13 अप्रैल तक प्रभावित जिलों का दौरा करके अध्ययन किया है. इस रिपोर्ट को शुक्रवार के दिन पटना में जारी किया गया. रिपोर्ट के अनुसार साम्प्रदायिक दंगों की तैयारी काफी पहले से शुरू कर दी गयी थी. इन दंगों को संगठित तौर पर अंजाम दिया गया था. रिपोर्ट में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इन दंगों में अनेक जिलों की पुलिस प्रशासन ने दंगाइयों को या तो बचाने का काम किया या फिर इन दंगों का मूक समर्थन किया था.
हालांकि इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दंगा भड़कने के बाद अनेक जिलों के प्रशासन ने काफी चौकसी से भी काम लिया जिससे दंगों को रोका जा सका.
रिपोर्ट में खास तौर पर भगालपुर के दंगे का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि यहां की पुलिस ने अनेक मामलों को गोलमाल करने के लिए महज एक एफआईआर दर्ज किया है. जबकि अनेक एफआईआर लिखाये गये थे. रिपोर्ट में कहा गया है कि दंगों से जुड़े अनेक मामले को एक साथ नत्थी कर देने से अनेक मामले दब जायेंगे.
रिपोर्ट में बताया गया है कि इन दंगों में भाजपा के अनेक विधायक व सांसदों का भी हाथ है. रिपोर्ट में बताया गया है कि केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे द्वारा जुलूस का नेतृत्व किया गया और दंगा भड़काया गया. लेकिन उन्हें एक हफ्ता तक गिरफ्तार नहीं किया गया.