राजद के चार प्रवक्ताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिल्ली में महज दो मंत्री पद और अपनी सरकार की रक्षा में बिहार के 13 करोड़ लोगों का हक छोड़ दिया। कहा कि उन्हें केंद्र सरकार में बिहार की हिस्सेदारी नहीं, सत्ता में खुद की हिस्सेदारी चाहिए।

राजद के प्रदेश प्रवक्ता चित्तरंजन गगन, दल के अन्य प्रवक्ता मृत्यंजय तिवारी, सारिका पासवान, प्रमोद कुमार सिन्हा के साथ पार्टी प्रदेश कार्यालय में संवाददाता सम्मेलन में कहा कि भाजपा की तरह जदयू भी अब बिहार को विशेष राज्य दर्जा देने की मांग से पीछे हटने लगी है। इसीलिए उसके नेताओं की भाषा बदलने लगी है। अब वे बोल रहे हैं कि विशेष दर्जा नहीं तो विशेष पैकेज हीं दे दिया जाए।

गगन ने कहा कि 19 वर्षों से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं। 16 साल से भाजपा बिहार सरकार में शामिल है और दस वर्षों से केन्द्र में एनडीए की सरकार है। प्रधानमंत्री द्वारा घोषित तथाकथित विशेष पैकेज भी बिहार को मिल चुका है। इसके बावजूद नीति आयोग द्वारा जारी इंडेक्स में यदि बिहार सबसे निचले पायदान पर है। तो फिर आंकड़ों में लुभावना लगने वाले ऐसे विशेष पैकेज से बिहार का विकास कैसे संभव है। इसलिए यदि सही में जदयू की मंशा बिहार के विकास के प्रति नियत साफ है तो उसे केन्द्र पर दबाव बना कर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलवाने के लिए पहल करना चाहिए। अभी हीं सुनहरा मौका है। यदि इसमें नीति आयोग बाधक है तो अब तो नीति आयोग में बिहार के तीन – तीन मंत्री शामिल हैं। अभी संसद का बजट सत्र शुरू होने वाला है। केन्द्र सरकार की नियत यदि साफ है तो इसी सत्र में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की घोषणा होनी चाहिए।अब यह जदयू को तय करना है कि वह बिहार की हिस्सेदारी चाहता है कि की राज भोगने के लिए केवल सत्ता में भागीदारी चाहता है।

नीतीश कुमार ने कहा था कि जो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देगा हम उसी के साथ जायेंगे। भाजपा के साथ जाने वक्त जदयू और भाजपा ने कहा था कि डबल इंजन की सरकार बनेगी तो बिहार का विकास काफी तेजी से होगा। हकीकत यह है कि बिहार बँटवारे के बाद इन दोनों दलों ने ही एक साजिश के तहत बिहार को विशेष राज्य का दर्जा और विशेष पैकेज नहीं मिलने दिया था। जबकि ‘‘बिहार पुनर्गठन कानून 2000’’ में ही स्पष्ट प्रावधान है कि बिहार की क्षति-पूर्ति के लिए विशेष प्रबंध किये जायेंगे। जबकि उसी क्रम में उतराखण्ड और छत्तीसगढ के गठन सम्बन्धी कानूनों में यैसा कोई प्रावधान नहीं है। इसके बावजूद उन्हें विशेष राज्य का दर्जा दिया गया। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले, इस माँग का सही वक्त 2000 था जब झारखंड बिहार से अलग हुआ और उतराखण्ड को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था।

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उस समय केन्द्र मे एनडीए की सरकार थी जिसका प्रमुख घटक जदयू था और राज्य में राबड़ी देवी जी के मुख्यमंत्रित्व में राजद की सरकार थी। झारखंड राज्य के औपचारिक गठन के पूर्व हीं 25 अप्रैल 2000 को हीं बिहार को बँटवारे से होने वाली क्षति-पूर्ति की भरपाई करने के लिए बिहार विधानसभा से सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार को भेजा गया था। झारखंड राज्य के औपचारिक रूप से बिहार से अलग होने के बाद 28 नवम्बर 2000 को बिहार के सभी सांसदों ने प्रधानमंत्री को ज्ञापन देकर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की माँग की थी। प्रधानमंत्री जी द्वारा विस्तृत प्रतिवेदन तैयार करने के लिए तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री नीतीश कुमार जी के संयोजकत्व में एक कमिटी का गठन कर दिया गया। पर कमिटी की कभी बैठक हीं नही बुलाई गई। 3 फरवरी 2002 को को दीघा सोनपुर पुल के शिलान्यास के अवसर पर पटना के गांधी मैदान मे आयोजित सभा में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व0 अटल बिहारी वाजपेयी जी के समक्ष हजारों बिहारवासियों के उपस्थिती में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती राबड़ी देवी जी द्वारा बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की माँग दुहराई गई। जिस पर प्रधानमंत्री जी ने तत्कालीन रेल मंत्री नीतीश कुमार जी की उपस्थिति में माँग को वाजिब करार देते हुए बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का आश्वासन दिया था। पर दिल्ली लौटने के क्रम में हवाई अड्डा पहुँचते ही प्रधानमंत्री जी विशेष राज्य का दर्जा के बजाय विशेष पैकेज की बात करने लगे। पुनः राजद सरकार द्वारा हीं 2 अप्रैल 2002 को बिहार विधान सभा से सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की माँग दुहराई गई। 16 मई 2002 को राजद के नोटिस पर नियम 193 के तहत लोकसभा में चर्चा हुई , सभी दलों ने बिहार का पक्ष लिया पर पुरे चर्चा के दौरान नीतीश जी अनुपस्थित रहे।

केन्द्र की तत्कालीन एनडीए सरकार द्वारा विशेष राज्य का दर्जा सम्बन्धी फाईल को तो ठंढे बस्ते मे तो डाल ही दिया गया विशेष पैकेज भी नही दिया गया। इतना ही नहीं सामान्य रूप से मिलने वाली केन्द्रीय राशि भी बिहार को नहीं दी गई।

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By Editor


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