बिहार को विशेष दर्जा देने से इनकार के बाद केंद्र की एनडीए सरकार के एक नए निर्णय से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार संकट में घिर गए हैं। नीतीश कुमार के समर्थन से चलने वाली केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ(RSS) की शाखाओं और गतिविधियों में सरकारी कर्मियों के शामिल होने पर जारी प्रतिबंध को हटा लिया है। जाहिर है अब सरकारी कर्मियों में संघ की घुसपैठ बढ़ेगी। सरकारी कर्मियों का राजनीतिकरण होगा। कांग्रेस, सपा के साथ ही बसपा ने भी इस निर्णय का विरोध किया है। अभी तक जदयू की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।

देश के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल ने आरएसएस की सांप्रदायिक राजनीति से तंग आ कर प्रतिबंध लगाया था। उसके बाद सरकारी कर्मियों के संघ के कार्यक्रम में शामिल होने पर रोक लगा दी गई थी ताकि सरकारी कर्मियों का गैर राजनीतिक चरित्र बना रहे। अब प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने वह प्रतिबंध हटा लिया है।

कांग्रेस के प्रवक्ता और सांसद जयराम रमेश ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा- फरवरी 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने RSS पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद अच्छे आचरण के आश्वासन पर प्रतिबंध को हटाया गया। इसके बाद भी RSS ने नागपुर में कभी तिरंगा नहीं फहराया। 1966 में, RSS की गतिविधियों में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर प्रतिबंध लगाया गया था – और यह सही निर्णय भी था। यह 1966 में बैन लगाने के लिए जारी किया गया आधिकारिक आदेश है। 4 जून 2024 के बाद, स्वयंभू नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री और RSS के बीच संबंधों में कड़वाहट आई है। 9 जुलाई 2024 को, 58 साल का प्रतिबंध हटा दिया गया जो अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान भी लागू था। मेरा मानना है कि नौकरशाही अब निक्कर में भी आ सकती है।

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इसके साथ सपा प्रमुख अखिलेश यादव, बसपा प्रमुख मायावती ने भी सरकार के निर्णय पर विरोध जताया है।

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By Editor


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