SaatRang : आपने चाय पी, पर सचमुच क्या उसका स्वाद भी लिया

आप चाय पीते हैं, खीर खाते हैं, क्या सचमुच स्वाद भी लेते हैं? कभी गौर करिएगा। अमूमन दूसरी बात में उलझे रहते हैं। अतीत या भविष्य में और खराब करते हैं वर्तमान।

स्वामी आनंद सुरेंद्र

कुमार अनिल

हम मॉर्निंग वॉक करते हैं, लेकिन हमारे शरीर के एक-एक अंग पर क्या असर पड़ रहा है, उसका हमें पता ही नहीं चलता। इन पंक्तियों के लेखक को भी इस दौरान कोयल की कूक दस बार में एक बार ही सुनाई पड़ती है। उसकी नौ कूक के समय मन कहीं और दौड़ता होता है। आदमी जिस काम में है, जिस नौकरी में है, जहां है, उसका आनंद वह नहीं ले पाता और हमेशा कभी अनिश्चित भविष्य में खोया रहता है और कभी अतीत में डुबकी लगाता है।

ओशो ने वर्तमान में जीने पर काफी जोर दिया है। पटना में ओशो ध्यान केंद्र के प्रमुख स्वामी आनंद सुरेंद्र वर्तमान में जीने के लिए आगाह करते रहते हैं। कल उन्होंने एक मैसेज भेजा। स्वामी आनंद सुरेंद्र कहते हैं-जिंदगी बड़ी बेबूझ चीज है। कल, जो अनिश्चित है, उसके बारे में सोचकर, हम अपना आज जी नहीं पाते हैं।जो वक्त आज निकल जायेगा, वह दुबारा नहीं आएगा।

वे आगे कहते हैं- दिक्कत ये है कि, ये सारी बातें हम सभी समझते हैं। पर, जो हमें ध्यान रखना चाहिए, वह नहीं रख पाते हैं। बात कुछ भी हो, कितना भी गंभीर हो, वह हमारे जीवन से बड़ा नहीं है। किसी भी हालत में, हमें यह नहीं भूलना चाहिए। पर, हम छोटी समस्याओं में ही इस बात को भूल जाते हैं।जबकि, बड़ी से बड़ी दिक्कत में भी, इस बात को याद रखना था, कि हमारा जीवन सबसे बड़ा है। आज भले ही,चीजें अनुकूल नहीं है। पर,एक दिन, फिर से चीजें सामान्य होंगी। प्रकृति का मूल नियम भी हमें यही संदेश देता है।

स्वामी आनंद सुरेंद्र का कुछ दिन पहले भेजा एक मैसेज भी बड़े काम का हैष उन्होंने लिखा-कभी कभी हममें से अधिकतर लोगों को यह लगता है कि बीते हुए जीवन काल में, अगर कुछ ऐसा और कुछ वैसा किया होता, तो आज हम और बेहतर जीवन जी रहे होते।

ठीक से समझेंगे, तो यह बात सही लगेगी। हम अपना आकलन करें, इसमें कोई हर्ज भी नहीं है। प्रश्न उठता है कि इस तरह की बातों का यथार्थ से कितना संबंध है। और दूसरा, क्या हम अपने जीवन में उचित निर्णय लेने में विलम्ब करते रहे।

पर वास्तव में बात इतना ही नहीं है, थोड़ा अलग है,एक शब्द है, नियति। हम जो भी सोचते और करते हैं, वह सीमित दायरे में लिया गया निर्णय होता है, पर नियति असीम है। उसकी अपनी गति और अपनी ही चाल है। जब उसका निर्णय हमारे मन के अनुकूल होता है, तब हमें अच्छा लगता है और जब विपरीत होता है, तब हम दुखी होते हैं। पर, वास्तव में नियति को हमारे मन से तादात्म बैठाने की कोई आवश्यकता नहीं है। हमे ही उसके अनुकूल होना होगा।
वह असीम और विराट है,वह जो भी निर्णय लेगा, वह हमारे प्रतिकूल कभी हो ही नहीं सकता। थोड़ा वक्त लग सकता है, पर देर सबेर, अंततः उसके निर्णय को स्वीकार कर हम जीवन के मूल नियम को समझ भी सकते हैं और जी सकते हैं।
अंततः आज हम जो भी हैं, जहां भी हैं,जिस दशा में हैं। वही हमारी नियति के द्वारा लिया गया निर्णय है। पर,साथ में, हमें सतत, सार्थक प्रयास भी, करते रहना होगा, क्योंकि, यही हमारा धर्म है।

ध्यान रहे स्वामी आनंद सुरेंद्र जिसे नियति कहते हैं, उसे भाग्य मत समझ लीजिएगा और न किसी हाथ देखनेवाले के फेर में फंस जाइएगा।

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By Editor


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