SaatRang : ताना या बाना अकेले कुछ नहीं कर सकते : ताई मां

SaatRang : ताना या बाना अकेले कुछ नहीं कर सकते : ताई मां

शास्त्रों का सार क्या है, क्या एक शब्द में परिभाषित कर सकते है? आचार्यश्री चंदना जी ने एक शब्द में बता दिया, जो आज के संदर्भ में सबसे कीमती है। बेशकीमती।

कुमार अनिल

वीरायतन की संस्थापक और जैन धर्म की पहली महिला आचार्य पद्मश्री आचार्यश्री चंदना जी ने कहा कि सिर्फ ताना या सिर्फ बाना कुछ नहीं कर सकता है। किसी समाज, देश या विश्व में खुशहाली के लिए ताना और बाना दोनों जरूरी है। वे अपने सम्मान में गुजरात के कच्छ में वीरायतन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बोल रही थीं।

आचार्यश्री चंदना जी, जिन्हें सम्मान के साथ लोग ताई मां भी कहते हैं, ने भगवान महावीर के प्रमुख संदेश मैत्री को व्यावहारिक ढंग से समझाते हुए इसका वैश्विक महत्व बताया। उन्होंने कहा कि आप अकेले नहीं रह सकते। कपड़ा कौन बनाता है, भवन कौन बनाता है, सड़कें कौन बनाता है, अनाज कौन उपजाता है? ये सभी कार्य कोई अकेला नहीं करता है। हम सभी एक दूसरे पर निर्भर हैं। एक दूसरे के लिए उपयोगी हैं। भगवान महावीर ने कहा कि एक दूसरे के लिए उपयोगी बनो, उपद्रवी नहीं। उन्होंने साधारण शब्दों से समझा दिया कि विविधता, बहुलता और एक दूसरे का सम्मान कितना आवश्यक है। उन्होंने कहा-भगवान महावीर ने एक शब्द का शास्त्र दिया है- वह शब्द है मैत्री। पूरी कायनात से मैत्री। पृथ्वी, नदियां, पशु-पक्षी और यहां रहनेवाले हर इंसान से मैत्री। जाति मत पूछना, धर्म मत पूछना। बस सबके प्रति मैत्री रखना। उन्होंने यह नहीं कहा कि साधना करना, पूजा करना, मंदिर बनाना, उन्होंने धर्म का सार सिर्फ एक शब्द में बता दिया, वह है मैत्री।

आचार्यश्री ने कहा कि आपने सम्मान जताते हुए मुझे शॉल ओढ़ाया। शॉल या कपड़ा ताना और बाना दोनों से बनता है। किसी एक से कपड़ा नहीं बन सकता है। ताना के साथ बाने को पिरोया जाता है। फिर वह सुंदर और मजबूत बन जाता है। इसी तरह समाज या विश्व कल्याण के लिए दोनों की जरूरत है। आचार्यश्री ने कहा कि वे 86 वें वर्ष में है। 50 वर्षों से वीरायतन के जरिये सेवा और संस्कार दे रही हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि कभी जाति या धर्म के आधार पर भेद नहीं किया। यही संस्कार वीरायतन के स्कूलों में बच्चों को दिए जाते हैं। बिहार के जमुई में रात तो छोड़िए, दिन में भी जाना असुरक्षित था। नक्सलाइट इलाका था। वहां वीरायतन ने स्कूल खोला। आज हजारों बच्चे देवदूत बन कर खड़े हैं। उनमें भी जाति और धर्म का भेद नहीं किया गया।

आचार्यश्री ने उन दिनों को याद किया, जब कच्छ में भूकंप के बाद सबकुछ तबाह हो गया था। वे उस समय यहां पहुंचीं और टेंट में रहकर लोगों की मदद की। उन्होंने कहा कि उन्हें मौका मिले, तो वे यूक्रेन की युद्ध भूमि में भी जाकर भगवान महावीर का संदेश देंगी कि हिंसा से, युद्ध से आज तक किसी समस्या का समाधान नहीं हुआ है। इससे पहले बच्चों ने आचार्यश्री के सम्मान में गीत गाए, अपनी बातें कहीं। कार्यक्रम में कच्छ के प्रबुद्ध नागरिक शामिल थे।

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