सच बोलिए, क्या आपने कहीं हम दो हमारे 12 देखा है, जहर से बचिए
पूंजी मुनाफे के लिए कुछ भी कर सकती है। नफरत बोने से मुनाफा मिले, तो उसी की खेती शुरू कर देती है। फिल्म हम दो हमारे 12 को लोग क्यों कह रहे नफरत का जरिया।
एक फिल्म के पोस्टर ने देश के सामूहिक विवेक पर फिर प्रश्न खड़ा कर दिया है। लेखक, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, प्रबुद्ध लोग इस फिल्म के नाम और जिस वर्ग को चित्रित किया है, उससे उद्वेलित हैं। क्या आपके मन में कोई सवाल नहीं उठा?
फिल्म हम दो हमारे बारह नाम ही झूठ पर खड़ा है। लेखक अशोक कुमार पांडेय ने कहा-अपने जीवन में चार अलग-अलग राज्यों में रहते हुए सैकड़ों मुस्लिम परिवारों से राबिता रहा है। मैंने किसी घर में किसी व्यक्ति की चार पत्नियाँ या बारह बच्चे नहीं देखे। जो पागलपन फैलाया गया है उसी को कैश कराने के लिए ऐसी घटिया फ़िल्में बनाई जाती हैं।
सामाजिक सरोकार रखने वाले दिनेश सिंह ने लिखा-18 साल दिल्ली – ग़ाज़ियाबाद बॉर्डर की मुस्लिम बहुल कॉलोनी में रहा, जिस गली में घर था, 50 में से 40 घर मुस्लिम परिवारों के थे लेकिन किसी घर में 4 बीवियां और 12 बच्चें न देखा और न सुना। ये फिल्म सिर्फ नफरत दिखाने के एक जरिया है। कट्टर हिन्दू भूखा मरेगा लेकिन नफरत नहीं छोड़ सकेगा।
इंदरजीत बराक ने लिखा-बहुत से साथियों के मुस्लिम दोस्त भी होंगे… मेरे भी काफ़ी हैं… आप ऐसे कितने मुसलमानों से मिले हो जिनकी 3-4 बीवियाँ हों और 10-12 बच्चे हों?? मेरे पास तो ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है… तो फिर क्यों वाहियात की बातें फैलाई जा रही हैं,कौन ये फैलाकर राजनीतिक लाभ लेना चाहता है? डॉ. चयनिका उनियाल ने लिखा-मेरी नानी के 11 संतान थी, जिसमें से 9 जीवित रहीं। उस जमाने में ऐसा लगभग सभी परिवारों में सामान्य था। पर आज के युग में यह चलन सभी समाजों में कम हुआ है।
पत्रकार पुनीत कुमार सिंह ने लिखा-अन्नू कपूर खुद 3 बार शादी कर चुके है। अशरफ हुसैन ने लिखा-इस फ़िल्म के अभिनेता अन्नू कपूर खुद दो शादी कर चुके हैं जिनसे उनके चार बच्चे हैं, पहली पत्नी से 1992 में शादी किये फिर 1993 में तलाक़ ले लिया, 1995 में दूसरी शादी किये फिर 2005 में तलाक़ ले लिया, आखिर में 2008 में अन्नू ने अपनी पहली पत्नी से दोबारा शादी कर ली। आप ही सोचिए…। अनब्रेकेबल नाम के एक यूजर ने लिखा-सभी फ्लॉप एक्टर और निर्देशक एक एजेंडे के तहत फ़िल्म बनाकर नफरती सरकार को खुश करने में लगे हुए हैं। यूपी जनसंख्या नियंत्रण कानून में अब्दुल तो घुन के बराबर था, असल पिसाई तो बहुजन समाज की हो रही थी। इसलिए लागू ही नहीं किया। डराने की की राजनीति।
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