सफल बिजनेसमैन से बने सेवादार, वीरायतन में छोड़ गए प्रेम पियाला सफल
पवन जैन दिल्ली में सफल बिजनेसमैन थे। सबकुछ छोड़ वीरायतन में वर्षों से गरीबों की सेवा कर रहे थे। दो दिन पहले देहावसान हुआ। याद रहेगा उनका प्रेम पियाला।
कुमार अनिल
लोग पैसे के लिए क्या-क्या तिकड़म नहीं करते। पैसे से बहुत कुछ खरीदा जा सकता है, लेकिन सबकुछ नहीं। फिर आदमी को अंत में क्या चाहिए? चाहिए शांति-सुकून और मुस्कान। ये बाजार में नहीं बिकते।
पवन जैन दिल्ली में सफल बिजनेसमैन थे। घर में पिता की जिम्मेदारी पूरी करने के बाद वीरायतन की सेवा में आ गए। यहां कभी वे नेत्र अस्पताल में गरीब मरीजों की मदद करते, कभी ब्राह्मी कला मंदिरम (म्यूजियम) में लोगों के गाइड बन जाते, तो कभी पुस्तक केंद्र का कार्य संभालते। जो भी जिम्मेदारी मिलती, उसे निभाते। रविवार को उनका देहावसान हुआ-पावापुरी में। वे 72 वर्ष के थे।
लेकिन पवन जैन की खास बात कुछ और है। कबीर के शब्दों में उन्होंने प्रेम पियाला चख लिया था।
शीश उतारे भोएं धरे, ता पर राखे पांव। दास कबीरा यू कहे, ऐसा होए तो आओ। प्रेम पियाला चखा नहीं, सूफी बना तो क्या हुआ..। (इसे आबिदा परवीन की आवाज में सुनना बेहद खास है)
यहां शीश उतारने का अर्थ अहंकार को, मैं को छोड़ देने से है।
जिस प्रेम पियाला चखने, कपड़ा नहीं, मन रंगाने की बात कबीर करते हैं, वही बात आचार्यश्री चंदना जी उत्तराध्ययन सूत्र में कुछ अलग ढंग से समझाती हैं।
माणुसत्तं सुई सद्धा संजमंमि य वीरियं अर्थात मनुष्यता, सद्धर्म का श्रमण, श्रद्धा और संयम। ये चार गुण प्राणियों में दुर्लभ हैं। इन चारों में पहला स्थान माणुसत्तं अर्थात मानवता या मनुष्यता का है। मनुष्यता की सघन अनुभूति भी तभी संभव है, जब मैं खो जाए। जैसे-जैसे मैं खोएगा, मनुष्यता और मैत्री भाव जागेगा।
पवन जैन ने संसार से पलायन नहीं किया था, बल्कि संसार को अपना मान लिया था। इसीलिए वे राजगीर में वीरायतन आए। यहां वे सेवादार बने। कितने लोगों ने उन्हें महज कर्मचारी समझ कर अवहेलना की होगी, कितने लोगों ने उनकी उपेक्षा की होगी, पता नहीं, लेकिन इतना तय है कि इसका उनपर कोई असर नहीं पड़ा। वे तो तीर्थंकर की भूमि में थे। भगवान महावीर को क्या कम दुश्वारियां झेलनी पड़ीं। यह एक अलग ही कहानी है।
पवन जैन देहावसान से पांच दिन पहले तक सेवा करते रहे। बीमार होने पर उन्हें पावापुरी अस्पताल में भर्ती कराया गया। यहीं उनका निधन हुआ। उनके पुत्र अनुराग जैन कहते हैं कि उन्होंने मोक्ष भूमि में अंतिम सांस ली। यह बहुत कम लोगों को नसीब होता है। वे हमारे आदर्श हैं। अनुराग ने यह भी बताया कि उनकी मां कृष्णा जैन पहले की तरह वीरायतन में सेवा का कार्य करती रहेंगी।
पवन जैन यहां मैत्री का संदेश देते रहे। लोगों को प्रेम पियाला चखाते रहे। वीरायतन में उनका प्रेम पियाला हमेशा रहेगा।