संत साहित्य के मर्मज्ञ थे धर्मेंद्र ब्रह्मचारी शास्त्री : डॉ. अनिल सुलभ
संत साहित्य के मर्मज्ञ थे धर्मेंद्र ब्रह्मचारी शास्त्री : डॉ. अनिल सुलभ
बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने कहा संत साहित्य के मर्मज्ञ आचार्य थे डॉ. धर्मेंद्र ब्रह्मचारी शास्त्री।
संत साहित्य के मर्मज्ञ आचार्य थे डॉ. धर्मेंद्र ब्रह्मचारी शास्त्री। वे साहित्य में शोध और अनुशीलन के आदर्श-पुरुष थे। उनका संपूर्ण जीवन तपश्चर्या का पर्याय था। प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपियों पर किए गए उनके कार्य, साहित्य-संसार की धरोहर हैं।
यह बातें बुधवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि, राष्ट्रभाषा परिषद द्वारा प्रकाशित उनकी शोध-पुस्तक अमेरिका साहित विश्व के ३० बड़े विश्वविद्यालयों में उपलब्ध है, जिनका उपयोग शोधार्थियों द्वारा संदर्भ-ग्रंथ के रूप में किया जाता है।
डा सुलभ ने सम्मेलन-भवन के निर्माण में महत्तम सहयोग देने वाले, सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष तथा बनैली-राज के स्वामी राजाबहादुर कीर्त्यानंद सिंह तथा खड़ीबोली की प्रथम पीढ़ी के अत्यंत आदरणीय साहित्यकार बाबू शिवनन्दन सहाय को भी श्रद्धापूर्वक स्मरण किया। उन्होंने कहा कि बनैली-राज की कीर्ति दूर-दूर तक राजाबहादुर के अवदानों के कारण फैली। वे न केवल स्वयं एक उच्च कोटि के कवि थे, अपितु कला,साहित्य और संगीत के महान पोशाकसंरक्षक भी थे। उन्होंने साहित्य सम्मेलन भवन के निर्माण में दस हज़ार रूपए की राशि उस समय दी थी, जब यह देश स्वतंत्र भी नहीं हुआ था। उनका दरबार कवियों से सुशोभित रहता था।
उन्होंने कहा कि बाबू शिव नन्दन सहाय आधुनिक हिन्दी की उस पीढ़ी के प्रतिनिधि लेखक थे, जिस पीढ़ी ने हिन्दी को अंगुली पकड़कर चलना सिखाया था। उनकी काव्य-रचनाओं ने न केवल हिन्दी के सामर्थ्य का परिचय दिया, अपितु बिहार का मुख भी उज्ज्वल किया।
शास्त्री जी के पुत्र और समाजसेवी विंग कमाण्डर नरेंद्र कुमार ने कहा कि मेरे पिता का सम्मान साहित्य जगत में इसलिए बढ़ा कि उन्होंने अपना सर्वस्व हिन्दी की प्राचीन गरिमा को वापस लाने में खपा दिया। और समाज में मेरा सम्मान इसलिए होता है कि मैं आचार्य धर्मेंद्र ब्रह्मचारी शास्त्री का पुत्र हूँ।
भोजपुर ज़िला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा बलराज ठाकुर ने कहा कि बाबू शिवनन्दन सहाय का कायिक और साहित्यिक दोनों ही व्यक्तित्व विशाल था। जिन महान साहित्याकारों से आरा की धरती पवित्र हुई, उनमे शिवनन्दन बाबू का नाम अत्यंत गौरवशाली है।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा शालिनी पाण्डेय, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, शायरा तलअत परवीन, डा सुषमा कुमारी तथा नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’ ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर लघुकथा गोष्ठी भी संपन्न हुई, जिसमें डा शंकर प्रसाद ने ‘रिश्ते’, डा मधु वर्मा ने ‘भाग्य’, कुमार अनुपम ने ‘नशे से दूर’, ई अशोक कुमार ने ‘इज्जत’, सदानन्द प्रसाद ने ‘स्कूल का बस्ता’, अजित कुमार भारती ने ‘चोर चोर मौसेरे भा’ शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया।
वरिष्ठ समाज सेवी रामाशीष ठाकुर, आचार्य शास्त्री के पौत्रवधु आभा प्रियरूप, सुखदेव प्रसाद, दुखदमन सिंह, अजित कुमार भारती, राम प्रसाद ठाकुर, अतुल कुमार, अमित कुमार सिंह आदि प्रबुद्धजन समारोह में उपस्थित थे। मंच का संचालन कुमार अनुपम ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
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