सरकार का सारा ध्यान शहरों पर, भगवान भरोसे गांव
गांवों का बड़ा हिस्सा इतना गरीब है कि बीमार होने पर लोग जिला मुख्यालय जाने में भी असमर्थ हैं। बुखार का प्रकोप बढ़ रहा है। टेस्ट व टीके की कमी बनी जानलेवा।
कल ही दुनिया के प्रसिद्ध मेडिकल जर्नल द लांसेट ने भारत को आगाह किया कि कोरोना को गांवों में फैलने से नहीं रोका गया, तो एक अगस्त तक दस लाख लोग मर सकते हैं। आज राहुल गांघी ने ट्विट किया-शहरों के बाद अब गांव भी परात्मा निर्भर।
बिहार के गांवों में महामारी ने विकराल रूप ले लिया है। चौक-चट्टी- बाजार के मेडिकल दुकानों में भीड़ कोई भी देख सकता है। सर्दी-खांसी-बुखार का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। बहुत से लोग टायफाइड की दवा खा रहे हैं, जबकि पटना के डाक्टर मानते हैं कि विडाल टेस्ट पॉजिटिव आने के मतलब यह नहीं की टायफाइट ही हो। इस पर बिहार सरकार ने अबतक कोई गाइडलाइन नहीं दी है।
आज उत्तर प्रदेश के एक अखबार की एक खबर सोशल मीडिया में वायरल है। 13 गावों में अखबार ने सर्वे किया है। हर गांव में बुखार से लोग पीड़ित हैं। किसी का कोरोना टेस्ट नहीं हुआ है और लोग झोला छाप के भरोसे हैं। यही स्थिति बिहार के गावों की भी है। अनेक ऐसे परिवार हैं, जिनके घर में किसी को बुखार हुआ। रात में सोया और सोया ही रह गया।
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गांव की बड़ी आबादी वलनरेबल (संवेदनशील) है। इनके पास न तो इतना पैसा है कि प्राइवेट डॉक्टर के पास जा सकें और न ही इतनी जानकारी है कि सोशल मीडिया पर किसी से मदद मांग सकें। शहरों में सोशल मीडिया, सरकार सबका ध्यान है, पर गांवों को देखनेवाला कोई नहीं है।
सबसे चिंता की बात है कि इनका न तो कोविड टेस्ट हो रहा है और न ही टीकाकरण। यहां तक कि मरने के बाद भी कोविड टेस्ट नहीं हो रहा है। श्मशानों में भीड़ बढ़ रही है। जिधर जाएं, उधर ही केश छिलवाए लोग मिल जाते हैं, जिसका अर्थ है कि उनके किसी परिजन की मौत हुई है। प्रशासन का पूरा ध्यान लॉकडाउन को लागू करने पर है।
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