आखिरकार SBI को झुकना ही पड़ा। उसने मंगलवार शाम को इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी सारी जानकारी चुनाव आयोग (ECI) को भेज दी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार उसे 15 मार्च शाम पांच बजे तक सारा डेटा अपनी वेबसाइट पर जारी करनी है, ताकि देश की जनता जान सके कि किस पार्टी को किस कंपनी ने कब कितना चंदा दिया। तो अब देश 15 मार्च की शाम पांच बजे का इंतजार करेगा कि चुनाव आयोग सारी जानकारी देता है या वह भी कोई बहाना बना कर इसे टालने की कोशिश करेगा। एसबीआई ने खूब टालने की कोशिश की। अंत में न्यायालय की अवमानना का केस चलाने की नौबत आ गई, तब उसे झुकना पड़ा।
बीबीसी की खबर के मुताबिक एसबीआई ने कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए जाने और उसे भुनाए जाने से जुड़े डेटा दो अलग-अलग जगहों पर रखे गए हैं। उसका कहना था ये डेटा उसके सेंट्रल डेटाबेस में नहीं है। उसका कहना था कि इसका मिलान करने के लिए अधिक काम करने की ज़रूरत पड़ेगी। उसकी दलील थी कि हर बॉन्ड पर एक यूनिक नंबर दिया गया है, उसे अल्ट्रा वॉयलट लाइट में पढ़ना पड़ेगा। इसके बाद ही बॉन्ड का पता चल पाएगा. इसके अलावा उस पर कोई और ऐसा चिह्न नहीं है, जिससे यह पता लग सके कि उसका ख़रीदार कौन है क्योंकि ये बियरर बॉन्ड हैं। एसबीआई का कहना था कि बॉन्ड की संख्या की जानकारी को डिज़िटल तरीक़े से रखा गया है, वहीं उसे ख़रीदने वालों की जानकारी भौतिक रूप में रखी गई है. ऐसे में दोनों को मिलाने में अधिक समय लगेगा।
CCA नियमों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा DYFI
सुप्रीम कोर्ट के बार एसोसिएशन ने मंगलवार को राष्ट्रपति से अपील की कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा करें। एसोसिएशन के अध्यक्ष आदिश अग्रवाल के नेतृत्व में एससीबीए ने उन निर्णयों पर चिंता व्यक्त की जो संभावित रूप से संवैधानिक गतिरोध पैदा कर सकते हैं । इसी के साथ चर्चा का बाजार गर्म है कि क्या इस संकट से बचने के लिए लोकसभा चुनाव टाले जा सकते हैं?