शराबबंदी फेल, दोगुना हो गए पीनेवाले, कमा रहे NDA नेता : राजद

राजद के तीन प्रवक्ताओं ने एक साथ कहा कि नीतीश सरकार की शराबबंदी पूरी तरह फेल हो चुकी। पीनेवाले लगभग दोगुना हो गए। एनडीए नेताओं की कमाई बढ़ी।

आज राजद के तीन प्रवक्ताओं ने नीतीश सरकार की शराबबंदी को ढकोसला बताया और गंभीर आरोप लगाए। राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि पहले राज्य में सिर्फ 9.5 प्रतिशत लोग शराब पीते थे, अब तथाकथित शराबबंदी के बावजूद पीनेवाले बढ़ गए हैं। अब इनकी संख्या बढ़कर 15 फीसदी हो गई है। राजद नेताओं ने एक बड़ा आरोप लगाया और कहा कि शराबबंदी दरअसल जदयू-भाजपा नेताओं की गुप्त आय का स्रोत बन गई है।

राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश प्रवक्ता चित्तरंजन गगन, मृत्युंजय तिवारी और एजाज अहमद ने प्रदेश कार्यालय में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि एनडीए शासनकाल में एनडीए नेताओं के लिए शराब “हीडेन सोर्स ऑफ फंड कलेक्शन ” बना रहा है। इसी वजह से शराबबंदी के बावजूद सत्ता के संरक्षण में राज्य के अन्दर शराब का अवैध कारोबार फल फूल रहा है।

मुख्यमंत्री द्वारा शराब नीति पर समीक्षा करने की बात खानापूरी के अलावा और कुछ भी नहीं है। कई- कई समीक्षा बैठकों का परिणाम भी लोग देख चुके हैं।

राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि शराब के प्रति दोहरी नीति पर चलने वाली एनडीए सरकार शराबबंदी के नाम पर लोगों को गुमराह कर रही है। राज्य में पहली बार एनडीए सरकार के गठन के साथ ही लोगों को शराब पीने के लिए प्रोत्साहित किया गया। राजद शासनकाल में लगी शख्त पाबंदियों को उदार बनाकर शराब की दुकान खोलने की खुली छूट दे दी गई। सरकारी आंकड़े के अनुसार वर्ष 2002-03 में ग्रामीण इलाके में जहां मात्र 779 शराब दुकानें थीं, वह 2006-07 में बढकर 2360 यानी तीन गुना हो गईं।

देशी शराब की खपत 4 गुना, विदेशी शराब की खपत 5 गुना और बियर की खपत 11 गुना बढ़ गई। राजद शासनकाल में 2002-03 में राज्य भर में विदेशी शराब की दुकानों की कुल संख्या 3095 थीं, जो एनडीए शासनकाल के वर्ष 2013-14 में बढकर 5467 हो गईं। देशी शराब की दुकानों को जोड़कर वैद्य रूप से खोले गई शराब दुकानों की कुल संख्या लगभग 14000 पहुंच गई थी।

राज्य में शराब की खपत बढाने के लिए एनडीए सरकार द्वारा जुलाई 2007 में नयी आबकारी नीति लागू की गई। सभी पंचायतों में कम से कम दो-दो शराब दुकान खोलने का निर्णय लिया गया। साथ ही राजद शासनकाल लगी शर्तों, जिनमें सार्वजनिक स्थानों, शैक्षणिक और धार्मिक स्थलों, स्टेशन और बस स्टैंण्डों, आवासीय परिसरों, पेट्रोल पंपों और अस्पतालों के 500 मीटर के अन्दर शराब का दुकान खोलना प्रतिबंधित था, को हटा दिया गया।

साथ ही दुकान परिसर में भी पीने की छूट दे दी गई। शराब की खपत बढाने के उद्देश्य से हाइवे और एनएच पर बार खोलने वालों को 40 प्रतिशत अनुदान की भी घोषणा की गई। शराब के प्रति सरकार की उदार नीति के खिलाफ माननीय उच्च न्यायालय पटना को हस्तक्षेप करना पड़ा और सख्त टिप्पणी करनी पड़ी। 31 जनवरी 2014 तक स्कूलों के नजदीक खुले शराब की दुकानों को बंद करने का आदेश देना पड़ा।

इससे हो रहे दुष्परिणामों को नजरअंदाज करते हुए तत्कालीन वित्त मंत्री सुशील मोदी गर्व से यह दावा करते थे कि उदारवादी शराब नीति के कारण राज्य का राजस्व बढ रहा है। एक्साइज ड्यूटी से 2002-03 में जहां 248 करोड़ रूपए आये थे वहीं 2012-13 में वह बढकर 2765 करोड़ हो गया। राज्य को टैक्स से होने वाली कुल कमाई में एक्साइज ड्यूटी का हिस्सा 2006-07 में जहां 10 प्रतिशत था वहीं 2012-13 में वह 18 प्रतिशत हो गया।

हीडेन फंड कलेक्शन के लिए एनडीए द्वरा बड़ी चालाकी से दुकान खोलने के नियम को बदल दिया गया। पहले परिसीमित क्षेत्र के लिए खुली बोली लगती थी, नये नियम के अनुसार आबकारी विभाग खुद अपने माध्यम से खुदरा दुकानदारों को आवंटित करने लगी और खुद थोक शराब बिक्रेता बन गया।

सरकार के खुली शराब नीति के दुष्परिणाम को देखते हुए नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के नेतृत्व में सरकार की शराब नीति के खिलाफ राजद द्वारा जबरदस्त अभियान चलाया गया। मदिरालय नहीं, पुस्तकालय चाहिए, शराब नहीं, किताब चाहिए के नारे के साथ राज्य के सभी जिला मुख्यालयों और पटना में प्रदर्शन किया गया।

राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री का यह दावा बिल्कुल झूठ है कि उन्होंने शराबबंदी लागू की है। 2015 में जब महागठवंधन की सरकार बनी तो राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद एवं नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के दबाव पर राज्य में शराबबंदी लागू हुई। जबतक महागठवंधन की सरकार चली शराबबंदी सफल रही, पर जब एनडीए की सरकार बन गई तो शराब का अवैध कारोबार फलने फूलने लगा। लाखों गरीब, मजदूर और कमजोर वर्ग के लोगों को जेल में बंद कर दिया गया। आजतक एक भी बड़े माफिया की गिरफ्तारी नहीं हुई।

जब जहरीली शराब की कोई घटना घटती है चौकीदार और थानेदार पर गाज गिरा दिया जाता है। आजतक एक भी बड़े पदाधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई है। जबकि मुख्यमंत्री जी ने घोषणा की थी कि जिस जिला में अवैध शराब पकड़ी जायेगी वहां के डीएम और एसपी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि केवल नीति बनाने से नहीं होता जबतक की नीयत साफ नहीं हो। शराबबंदी की हकीकत केन्द्र सरकार की एजेन्सी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के रिपोर्ट से स्पष्ट हो जाता है। रिपोर्ट के अनुसार 2013 में बिहार में शराबबंदी लागू नहीं थी तो 9.ʼ5 प्रतिशत लोग शराब का सेवन करते थे। अब जबकि शराबबंदी लागू है तो 15 प्रतिशत लोग शराब का सेवन कर रहे हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस में कार्यालय सचिव चन्देश्वर प्रसाद सिंह सहित कई अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे।

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