सिर्फ हफ्ता भर पहले हर टीवी चैनलों में स्मृति ईरानी छाई थीं, लेकिन जैसे ही कांग्रस ने राहुल गांधी को अमेठी के बजाय रायबरेली से प्रत्याशी बनाया, तो अचानक पूरा परिदृश्य बदल गया। एक दिन तो किसी तरह स्मृति ईरानी चर्चा में रहीं कि राहुल गांधी अमेठी से भाग गए, लेकिन यह कितना चलता। आज स्थिति यह है कि स्मृति ईरानी चर्चा से बाहर हो गई हैं और अब तो खबर है कि भाजपा ने भी उन्हें अकेले छोड़ दिया है। नामांकन के बाद भाजपा के किसी बड़े नेता ने ईरानी के लिए प्रचार नहीं किया है। अकेली ईरानी नुक्कड़ सभाएं कर रही हैं। इसमें भी वे अमेठी में अपने कार्यों की चर्चा करने के बजाय पाकिस्तान की बात कर रही हैं।
अनेक लोग मानते हैं कि स्मृति ईरानी की सिर्फ एक ही योग्यता थी कि उन्होंने राहुल गांधी को चुनाव में हराया। इसके कारण उनकी बड़ी पूछ थी। उन्हें शिक्षा मंत्रालय जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय मिला। फिर उन्हें कम महत्व वाले मंत्रालय दिए गए। उनकी वह योग्यता राहुल के प्रत्याशी नहीं बनने से खतरे में पड़ गई। इससे स्मृति ईरानी को भाजपा ने भी छोड़ दिया। अब तो स्थिति यह है कि अगर वे जीत भी गईं, तो उनकी वह पूछ नहीं रहेगी। कहा जाएगा कि उन्होंने एक कमजोर प्रत्याशी के एम शर्मा को हराया। और अगर चुनाव हार गईं, तब को उनका राजनीतिक भविष्य ही अंधेरे में डूब डाएगा।
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इधर प्रियंका गांधी ने रायबरेली और अमेठी में कैंप कर दिया है। उनकी सभाओं में भीड़ उमड़ रही है और जोश दिख रहा है। वे सीधे प्रधानमंत्री मोदी को घेर रही हैं। स्मृति ईरानी का नाम भी नहीं ले रही हैं। इस कारण भी ईरानी की मुसीबत बढ़ गई है। वे सुर्खियों से बाहर हो गई हैं। प्रियंका गांधी जिस तरह दोनों सीटों पर अभियान चला रही हैं, उससे कांग्रेस की स्थिति मजबूत दिखने लगी है। स्मृति ईरानी पाकिस्तान, मुसलमान के नाम पर हवा बनाना चाहती हैं, लेकिन देशभर में ऐसी हवा नहीं बन पा रही है। वे अपने कार्य के बारे में कम ही चर्चा करती हैं। लोगों की नाराजगी साफ दिख रही है। अगर वे चुनाव हार गईं, तो मोदी-शाह की भाजपा में उनकी क्या स्थिति होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है।