आय से अधिक संपत्ति मामले में फंसे मुजफ्फरपुर के एसएसपी विवेक कुमार सस्पेंड कर दिये गये. आइए जानते हैं आईपीएस विवेक कुमार के करियर की कुछ विवादित कहानियां.
जितना गहरा रिश्ता विवादों से है उतना ही मधुर रिश्ता नेताओं से भी रहा है। यही कारण रहा है कि विवादों के फंसने के बावजूद उन्हें हमेशा अच्छी जगह पोस्टिंग मिली है।
नौकरशाही मीडिया
राजनीतिक गलियारों में विवेक का नाम उन चंद आइपीएस अधिकारियों में है जो अपने संरक्षकों का दिल जीतने के लिए हर पल तैयार रहते हैं। सत्ता तक उनकी पैठ इतनी गहरी इस लिए भी है कि वो नेताओं के लुटकुन (छुटभैया) को भी सर कहकर पुकारते हैं। इतना ही नहीं, अंत:पुर की माने तो विवेक मन से मलाई बांटते हैं। यही कारण रहा है कि अब तक विवेक कई विवादों में फंसने के बावजूद मनमाफिक जगहों पर तबादला पाते रहे हैं।
इसलिए सवाल ये नहीं है कि आय से अधिक संपत्ति में विवेक गिरफ्तार हो सकते है या नहीं सवाल है कि उन्हें बचानेवाले कौन हैं और उनकी आगे क्या भूमिका होनेवाली है।
पुराने नोटों का खेल भी
उल्लेखनीय है कि ताजा मामला कांटी थाने के पानापुर ओपी में तैनात दारोगा संजय गौर की मौत के बाद उनकी पत्नी ने विवेक के खिलाफ गंभीर शिकायतें की हैं। विवेक पर हरियाणा के शराब माफिया के साथ सांठगांठ करने जैसे गंभीर आरोप के अलावा आय से तीन 3 गुना संपत्ति बनाने की बात भी कही गयी है। इसी आधार पर सोमवार को विवेक कुमार के मुजफ्फरपुर समेत पैतृक आवास, ससुराल और कुछ अन्य जगहों पर सतर्ककता ईकाई ने एक साथ छापेमारी की। इस छापेमारी में उनके सरकारी आवास से 45 हजार रुपये के पुराने नोट मिले हैं।
इसके अलावा 5.5 लाख रुपए नकद, 6 लाख के जेवरात तथा सास और ससुर के नाम पर करोड़ों रुपए के लेन-देन का पता चला है। विवेक की काली कमाई का एक और जरिया जांच टीम दल को पता चला है, जिसमें वह थाने की नीलामी किया करते थे और जो थानाध्यक्ष सबसे ज्यादा बोली लगाता था, उसको उसके पसंद का थाना दिया जाता था।
कंचन बाला का रहस्यमय मामला
दारोगा के साथ मिलकर काले कारनामे को अंजाम देना विवेक के लिए नया नहीं है। अगस्त 2012 में विवेक का नाम पहली बार सुर्खियों में उस वक्त आया जब सीतामढ़ी में बीए की छात्रा कंचन बाला झा आत्महत्या कांड में जांच कमेटी ने विवेक को दोषी पाया था। कंचन ने अपने सुसाइड नोट में लिखा था कि जब उसके भाई ने बहन के साथ हो रही छोडख़ानी की शिकायत तत्कालीन एसपी विवेक कुमार की थी तो न केवल एसपी साहब ने उसके भाई को समझौता कर लेने का सुझाव दिया था बल्कि सुझाव नहीं मानने पर दुष्टों ने उसके भाई को अगवा कर कई दिनों तक प्रताडि़त किया था। कंचन का दावा था कि इनसब बातों की जानकारी विवेक को थी।
तब लहक उठा था सीतामढ़ी
कंचन सूसाइड कांड ने उस वक्त सीतामढ़ी को लहका दिया था। लोग पुलिस प्रशासन के खिलाफ सड़क पर आ गये थे। शहर में तनाव को देखते हुए नीतीश सरकार ने एक आईजी को भेजा था, जिसने विवेक को क्लीन चीट दे दी थी। आइजी की इस रिपोर्ट को सीतामढ़ी की जनता ने खारिज कर दिया था और आंदोलन हिंसक रूप ले लिया था। इसी दौरान कंचनबाला के पिता और भाई जनता दरबार में नीतीश कुमार से मिले और उन्हें मामले से अवगत कराया। नीतीश कुमार के निर्देश पर तब के डीजीपी अभयानंद ने आइपीएस शोभा अहोतकर को जांच की जिम्मेवारी सौंपी। अहोतकर ने न केवल एसपी विवेक कुमार बल्कि एक दारोगा को भी इस पूरे मामले में दोषी पाया और अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी।
दारू माफियाओं के प्रति नर्मी
इसी रिपोर्ट के आधार पर विवेक को पद से हटाया गया, लेकिन विवेक की राजनीतिक गलियारों में ऐसी पहुंच रही है कि महज तीन माह बाद ही विवेक भागलपुर जैसे शहर के एसपी बन गये। यही कारण रहा है कि पुलिस मुख्यालय को विवेक की शिकायतें मिल रही थी लेकिन कार्रवाई करनेवाली फाइल बनती ही नहीं थी, जबकि विवेक कुमार के ऊपर दारू माफियाओं को मदद करने जैसे संगीन आरोप बहुत दिनों से लग रहे हैं। अब जबकि सतर्कता ईकाई की टीम और रत्न संजय जैसे अधिकारी ने विवेक के लिए हथकड़ी मांगी है तो देखना होगा कि विवेक के आका उसे अभी बचाते हैं या कुछ दिनों के लिए हवालात में रहने की सलाह देते हैं।