आत्मघाती हमला: इस्लाम में मनाही व इंसानियत के खिलाफ अपराध
आत्मघाती हमला अल्लाह के मखलूक के खिलाफ एक संगीन जुर्म है. इतना ही नहीं यह तहलील ए हराम यानी कुरान ने इसे हराम करार दिया है. पैगम्बर मोहम्मद साहब की विभिन्न हदीसों और शरिया की शिक्षा के खिलाफ है.
एक महत्वपूर्ण उदाहरण जब एक इस्लामी युद्ध ( गजवा) के दौरान एक व्यक्ति जिसका नाम कजाम था, वह घातक रूप से घायल हो गया था, युद्धरत लोगों में उसका सम्मान था, लेकिन पैगम्बर साहब ने उसके बारे में कहा- इनहू मिन अहल अन-नार ( यह दोजखियों या नरक का इंसान है). पैगम्बर साहब ने ये बातें इसलिए कहीं क्योंकि उसने युद्ध मे जख्मी होने के बाद अपनी पीड़ा से बचने के लिए खुद को अपने ही हथियार से मार डाला ( खुदकुशी) था.
पैगम्बर साहब की नसीहत
इस मामले में पैगम्बर मोहम्मद ने यह भी कहा कि उसके द्वारा जिसके हाथों में हमारी रूह है ( आत्मा), दुनिया तब तक समाप्त नहीं ोगी जब तक कि उसका समय नहीं आयेगा और हत्यारे को पता नहीं चलेगा कि वह क्यों मारा गया. अकसर कत्ल जैसी वारदात के पीछे साम्प्रदायिक वर्चस्व के कारण होती है. यह दूसरे के प्रति शत्रुता का परिणाम है, जो कि किसी भी सूरत में इस्लामी दृष्टि से ही इसे जायज ठहराया जा सकता.
कुरान पाक और पैगम्बर मोहम्मद के मानवता के प्रति आंखें खोलने वाले कुछ संदेश
ऐसे मामलों में उम्मत को हदीस के आईने में दिशा दिखाने की जरूरत है. यह काम समुदाय के लोगों और विद्वानों द्वारा समझाया जाना चाहिए.
इसी तरह मुसलमानों को कुरान की इस आयत को बार बार याद दिलाया जाना चाहिए जिसमें कहा गया है कि- एक मुसलमान अगर किसी की हत्या करता है तो यह एक ऐसा अपराध है जिसके कारण वह दोजख में जायेगा ( 4:93)
आज के परिपेक्ष्य में यह जरूरी है कि मुसलमानों में सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित किया जाये. उनमें हिंसा के विरुद्ध जागरूकता लाई जाये और उन्हें इस बात पर अमादा किया जाये कि समाज में अमन चैन के लिए वह काम करें. यह मानवता के लिए भी जरूरी है. ऐसे लोगों के लिए ही अल्लाह की रजा है और ऐसे लोग ही जन्नत के हकदार हैं.