राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े राफेल डील पर आज सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि राफेल सौदे में निर्णय लेने की प्रक्रिया पर शक करने की कोई वजह नहीं है। राफेल लड़ाकू विमानों की कीमत पर फैसला लेना अदालत का काम नहीं है।
नौकरशाही डेस्क
देश के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि पसंद का ऑफसेट पार्टनर चुने जाने में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है, और व्यक्तिगत सोच के आधार पर रक्षा खरीद जैसे संवेदनशील मामलों में जांच नहीं करवाई जा सकती।
विमान खरीदने को नहीं कर सकते विवश
प्रधान न्यायाधीश गोगोई ने कहा – ‘हम सरकार को 126 विमान खरीदने पर विवश नहीं कर सकते, और यह सही नहीं होगा कि कोर्ट केस के हर पहलू की जांच करे… कीमत की तुलना करना कोर्ट का काम नहीं है…’
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संदेह करने का अवसर नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हमें ऐसी कोई सामग्री नहीं मिली, जिससे लगे कि कमर्शियल तरीके से किसी खास कंपनी को लाभ दिया गया…”सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हम इस बात से संतुष्ट हैं कि प्रक्रिया पर संदेह करने का अवसर नहीं है… कोई भी देश पूरी तैयारी के बिना रहने का खतरा नहीं उठा सकता… यह कोर्ट के लिए सही नहीं होगा, यदि वह अपील प्राधिकरण की तरह सभी पहलुओं की जांच करने बैठ जाए…”
बता दें कि इस मामले में सीजेआई रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ ने इस मामले में दायर याचिकाओं पर आज सुनवाई पूरी की है। राफ़ेल बनाने वाली कंपनी दसॉ के सीईओ ने एक इंटरव्यू में कहा था कि कंपनी ने रिलायंस के साथ अपनी मर्ज़ी से समझौता किया है, किसी दबाव में नहीं। ये भी जोड़ा कि 2012 से ही रिलायंस से उनकी बात चल रही थी। इस सौदे में रफ़ाल की क़ीमत कम हुई है। वहीं, कांग्रेस ने उनके इस बयान को रटा-रटाया इंटरव्यू बताया। जबकि बीजेपी ने राहुल गांधी से माफी मांगने की मांग की।