सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसले में मुंबई के एक कॉलेज के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें हिजाब, नकाब, बुर्का और टोपी पहनने पर प्रतिबंध लगाया गया था। कोर्ट ने पूछा कि हिजाब पर प्रतिबंध लगाया, तो बिंदी और तिलक पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कॉलेज के इस आदेश पर गंभीर सवाल उठाए और धार्मिक प्रतीकों पर चुनिंदा प्रतिबंध लगाने की आलोचना की। कोर्ट ने माना कि यह भेदभावपूर्ण आदेश है।

लाइव लॉ की खबर के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेज के इस आदेश पर सवाल किया कि यदि इरादा एक समान ड्रेस कोड लागू करने का था तो केवल हिजाब, नकाब और बुर्का जैसे इस्लामी परिधानों पर ही प्रतिबंध क्यों लगाया गया। जस्टिस संजय कुमार ने यह भी पूछा कि यदि कॉलेज वास्तव में एक निष्पक्ष और समान नीति लागू करना चाहता था तो क्या तिलक और बिंदी जैसे अन्य धार्मिक चिह्नों पर भी प्रतिबंध नहीं लगना चाहिए था? यह मामला कोर्ट के सामने तब आया, छात्राओं ने कॉलेज के इस निर्देश को चुनौती दी। उन्होंने इसे अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखा जिसमें धर्म का पालन करने का अधिकार, निजता का अधिकार और पसंद का अधिकार शामिल है। छात्राओं का कहना था कि कॉलेज का यह निर्णय संविधान द्वारा दिए उनके अधिकारों का हनन करता है। साथ ही धार्मिक स्वतंत्रता पर भी अंकुश लगता है।

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याचिकाकर्ताओं का कहना था कि परीक्षाएं शुरू होने वाली हैं और अचानक ऐसे निर्देश से खास वर्ग की छात्राओं को मानसिक तनाव झेलना पड़ रहा है। उनकी परीक्षा पर इस निर्ण का असर पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से एक उदाहरण भी स्थापित हो गया है, जिससे आगे से कॉलेज ऐसा आदेश नहीं दे सकेंगे। याद रहे महाराष्ट्र में तीन महीने बाद ही विधानसभा का चुनाव है। कॉलेज के इस निर्णय को राजनीतिक मुद्दा बनाया जा सकता था, जिससे सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ सकता था।

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By Editor


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