आपको अखबार भले ही काफी महत्व के साथ छापते हों पर कोई यह दावे से नहीं कह सकता कि आपको कितने लोग पढ़ते हैं. लेकिन सोशल मीडिया की यह खासियत है कि आपके ट्विट या आपकी पोस्ट को कितने लोगों ने पढ़ा. कितनों ने प्रतिक्रिया दी या फिर कितने लोगों ने उसे शेयर या रिट्विट किया. ये तमाम आंकड़ें उपलब्ध होते हैं.
आपको अखबार भले ही काफी महत्व के साथ छापते हों पर कोई यह दावे से नहीं कह सकता कि आपको कितने लोग पढ़ते हैं. लेकिन सोशल मीडिया की यह खासियत है कि आपके ट्विट या आपकी पोस्ट को कितने लोगों ने पढ़ा. कितनों ने प्रतिक्रिया दी या फिर कितने लोगों ने उसे शेयर या रिट्विट किया. ये तमाम आंकड़ें उपलब्ध होते हैं.
बिहार के पाठकों को यह बखूबी पता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जुड़ी कोई भी खबर अमूमन पेज एक पर प्रमुखता से छपती है. इस संदर्भ में दूसरा नाम उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी का है. जो काफी प्रमुखता से तमाम अखबारों में जगह पाते हैं. जहां तक बात तेजस्वी यादव की है, तो उनकी अकसर यह शिकायत रहती है कि उनसे जुड़ी सकारात्मक खबरों को अखबारों में दबवा दिया जाता है या अंदर के पन्नों पर ठेल दिया जाता है. नेता प्रतिपक्ष के नाते उनके आरोप का अपना पक्ष है. जबकि नीतीश-मोदी को अखबार सर्वाधिक महत्व क्यों देते हैं? यह बहस का एक अलग मुद्दा है.
पर हम यहां सोशल मीडिया के दो प्रसिद्ध माध्यमों- फेसबुक और ट्विटर की बात करना चाहते हैं. यहां तेजस्वी यादव की धूम है. इन दोनों प्लेट फार्मों पर नीतीश कुमार और सुशील मोदी, तेजस्वी के तूफान में एक तरह से उखड़ चुके हैं. अगर हम यह मुद्दा अपने नियमित कॉलम ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ में उठा रहे हैं तो इससे पहले हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि हम अपनी बातों को तथ्यों एंव आंकड़ों के साथ पेश करें.
आंकड़ें बोलते हैं
लिहाजा आइए हम पूरी प्रमाणिकता से ये बातें अपने पाठकों के समक्ष पेश करते हैं.
सबसे पहले हम फेसबुक पर इन तीनों नेताओं के फॉलोअर्स की संख्या को देख लें. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के फेसबुक पर 15 लाख से अधिक फालोअर्स हैं. फेसबुक पर सुशील मोदी के फालोअर्स की संख्या 13 लाख से अधिक हैं. जबकि तेजस्वी यादव के फेसबुक फालोअर्स की कुल संख्या 12 लाख के करीब है. यानी नीतीश कुमार के फालोअर्स की संख्या, तेजस्वी से करीब तीन लाख ज्यादा है. इसी तरह सुशील मोदी के फालोअर्स भी तेजस्वी से करीब एक लाख ज्यादा हैं.
लेकिन इन तीनों नेताओं के फेसबुक पोस्ट को पसंद किये जाने की जहां तक बात है तो अगर आप गौर करें तो पायेंगे कि नीतीश और मोदी, तेजस्वी की पोस्ट के सामने कहीं नहीं टिकते. दूसरे शब्दों में कहें तो नीतीश और मोदी के ज्यादा फालोअर्स होने के बावजूद वे तेजस्वी के तूफान में धारासाई हो जाते हैं.
याद दिलाउं कि यह आलेख 23 जनवरी को लिखा जा रहा है. ताकि आपको पता चल सके कि किसी खास तारीख को तीनों नेताओं की पोस्ट की क्या स्थिति है. मिसाल के तर पर 19 जनवरी की तीनों नेताओं की पोस्ट की तुलना करें. 19 जनवरी को तीनों नेताओं ने पोस्ट किये. इस दिन जहां नीतीश कुमार की पोस्ट को 1200 लोगों ने लाइक किया,81 लोगों ने शेयर किया तो मात्र 37 लोगों ने प्रतिक्रिया दी.
इसी दिन यानी 19 जनवरी को ही सुशील मोदी ने भी एक पोस्ट किया. यह पोस्ट काफी आक्रामक थी. इसमें सवर्ण आरक्षण पर राजद के विरोध पर मोदी ने हमला किया. इस पोस्ट को मात्र 164 लोगों ने पसंद किया, 15 लोगों ने प्रतिक्रिया दी जबकि महज 13 लोगों ने शेयर किया.
ठीक इसी दिन तेजस्वी ने कोलकाता में अपनी रैली में कही गयी बातों को पोस्ट किया. इस पोस्ट को 17 हजार लोगों ने पसंद किया. इस पर 1100 लोगों ने कमेंट किया. जबकि इस पोस्ट को 1538 लोगों ने शेयर किया.
इस प्रकार तुलनात्मक रुप से देखें तो तेजस्वी की 19 जनवरी की पोसट को नीतीश की तुलना में लगभग 17 गुणा ज्यादा लोगों ने पसंद किया. जबकि इसी दिन मोदी की पोस्ट से 100 गुणा से भी ज्यादा लोगों ने तेजस्वी की पोस्ट को पसंद किया. इसी तरह शेयर की संख्या देखें तो पता चलता है कि तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार और सुशील मोदी की शेयर की कुल संख्या को भी जोड़ दें तो तेजस्वी यादव की पोस्ट उन दोनों नेताओं की सम्मिलित शेयर से 15 गुणा ज्यादा बार शेयर की गयी.
आप आंकड़ें देख सकते हैं.
तीनों नेताओं की फेसबुक पोस्ट की यह बानगी है
इसी तरह इन तीनों नेताओं की फेसबुक पोस्ट की तुलनात्मक अध्ययन के लिए किसी भी एक तिथि का चयन किया जा सकता है. आप कमोबेश ऐसे ही नतीजे देखेंगे.
फेसबुक की बारीकियों को जानने वालों को पता है कि फेसबुक पर आक्रामक पोस्ट पर ज्यादा प्रतिक्रियायें आती हैं. ऐसे में वे लोग यह तर्क दे सकते हैं कि नीतीश कुमार आम तौर पर आक्रामक पोस्ट नहीं करते. लेकिन पिछले वर्ष नीतीश ने दो आक्रामक पोस्ट राजद के खिलाफ किये थे. उन पोस्ट्स पर भी कोई खास तवज्जो फेसबुक यूजर्स ने नहीं दी. इसके बाद नीतीश फेसबुक पर वैसे पोस्ट करने ही छोड़ दिये.
जहां तक सुशील मोदी का सवाल है तो वह अकसर राजद, लालू यादव या तेजस्वी के खिलाफ आक्रामक पोस्ट ही करते हैं. इसके बावजूद मोदी की पोस्ट पसंद करने वालों के लाले पड़े रहते हैं.
अब हम फिर से अखबारों की बात पर आते हैं. नीतीश और मोदी की खबरें अखबारों में प्रमुखता से छपती हैं. लेकिन उन खबरों पर कितने लोग तवज्जो देते हैं इसका पता भले ही न चले लेकिन वही पोस्ट जब फेसबुक पर डाले जाते हैं तो उसका क्या अंजाम होता है उसका प्रमाण हमारे सामने है.