जनता दल राष्ट्रवादी के राष्ट्रीय कंवेनर अशफाक रहमान ने मोब लिंचिंग में मुसलमानों के कत्ल की नयी परिभाषा की ओर इशारा करते हुए कहा कि नफरत की सौदागरी करने वाली भाजपा समेत तमाम दलों ने मुसलमानों को गाय की तरह राजनीतिक पशु समझ लिया है.

उन्होंने कहा कि मुसलमानों की हत्या की कीमत ये तमाम दल वोट के रूप में वसूल करने में लगे हैं.

अशफाक रहमान ने साफ कहा है कि पिछले चार वर्षों में मोब लिंचिंग की जितनी वारदात हुई है उन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगर अपनी जुबान नहीं खोली तो कथित सेक्युलर सियासत करने वाले दलों के रहनुमाओं ने भी एक शब्द विरोध में नहीं कहा. अशफाक ने कहा कि ये तमाम दल साम्प्रदायिक राजनीति की रोटियां सेकते हैं. उन्होंने जोर दे कर कहा कि जहां भाजपा मुसलमानों को भीड़ के हाथों मरवा कर मुसलमानों की नफरत के बल पर वोट लेने में लगी है तो सेक्यलरिज्म की रोटी सेकने वाले लालू, मायावती, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी और नीतीश कुमार जैसे नेता मुसलमानों को भाजपा से डरा कर वोट बटोरने का काम करते हैं.

राजनीतक गुलाम हैं मुसलमान

अशफाक रहमान ने इन हालात के लिए बहुत हद तक मुसलमानों को भी जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि मुसलमान मानसिक रूप से बेबस और गुलाम बन चुके हैं जिसके कारण वो देश के सम्मानित नागरिक के बजाये गाय की तरह राजनीतिक पशु बन गये हैं.

 

अशफाक रहमान ने इन बुरे हालात के मद्देनजर अंदेशा जताया है कि आने वाले दिनों में भी मुसलमानों राजनीतिक पशु ही बने रहेंगे और इनकी दुर्दशा जारी रहेगी क्योंकि मुस्लिम समाज एक राजनीतिक रूप से गुलाम पशु बन चुका है जो अपने रहनुमाओं पर भरोसा करने के बजाये लालू, नीतीश, रामविलास, ममता और मायावती को अपना मुहाफिज और रहनुमा समझता है.

मुल्लापंथी भी जिम्मेदार

अशफाक रहमान ने इस स्थिति के लिए मुसलमानों के मजहबी रहनुमाओं पर भी हमला बोला, जिसने, बकौल उनके मुसलमानों को मुल्लापंथी में फंसा कर अपना गुलाम बना रखा है. अशफाक रहमान ने कहा कि ये मजहबी मुल्ले मुसलमानों को जन्नत का सब्जबाग दिखा कर उनकी भीड़ को जमा तो कर लेते हैं लेकिन सियासी गोलबंदी न तो कर पाते हैं और न ही राजनीतिक गुलामी से आजाद करा पाते हैं.

 

हमें शर्म नहीं आती कि 3 से 4 प्रतिशत आबादी वाला पासवान समाज अपना नेतृत्व खड़ा कर लेता है. हमें इस बात पर भी कोई लोकलाज नहीं कि 9-11 प्रतिशत आबादी का यादव समाज अपना मजबूत लीडरशिप खड़ा कर लेता है जबकि 20 प्रतिशत आबादी का मुस्लिम समाज अपने रहनुमा के साथ खड़ा नहीं होता- अशफाक रहमान

अशफाक रहमा ने मुसलमानों के सियासी दोहन के लिए कांग्रेस को भी लताड़ा और कहा कि पिछले साठ सालों में इसने मुसलमानों को जातियों और मसलकों में बांट कर तबाह कर दिया. जिसका नतीजा यह हुआ कि मुसलमानों का पूरा समाज मानसिक विकृति का शिकार हो गया जो अपनी आजाद राजनीतिक पहचान की बात सोचने के लायक भी नहीं बचा है. मुसलमानों को ललकारते हुए अशफाक रहमान ने कहा कि मोब लिंचिंग, लवजिहाद और और हर लम्हे अपने खानपान और पहचान पर भारी खतरे के इस दौर में अगर यह समाज  अपने स्वतंत्र राजनीतिक नेतृत्व के लिए आगे नहीं बढ़ा तो और भी बुरे दौर का सामना करना पडेगा.

अशफाक रहमान ने मुसलमानों को झकझोड़ते हुए कहा कि हमें शर्म नहीं आती कि 3 से 4 प्रतिशत आबादी वाला पासवान समाज अपना नेतृत्व खड़ा कर लेता है. हमें इस बात पर भी कोई लोकलाज नहीं कि 9-11 प्रतिशत आबादी का यादव समाज अपना मजबूत लीडरशिप खड़ा कर लेता है जबकि 20 प्रतिशत आबादी का मुस्लिम समाज अपने रहनुमा के साथ खड़ा नहीं होता. मुस्लिम नेतृत्व की जब भी कोई कोशिश होती है तो यही मुस्लिम समाज इन मुस्लिम लीडरों पर शक की नजर से देखता है. अशफाक रहमान ने कहा कि मुसलमानों की दर असल यह गुलाम मानसिकता का नतीजा है और उन्हें कांग्रेस ने इस हाल तक पहुंचाया है.

भीखमंगी की सियासत से बाज आयें

अशफाक रहमान ने इस बात पर बड़ी चिंता जताई कि पिछले साठ वर्षों में मुस्लिम समाज राजनीतिक रूप से ठगे जाने और इस्तेमाल होते रहने का आदी हो चुका है. उन्होंने कहा कि मुसलमानों की यही गुलाम मानसिकता का नतीजा है कि विभिन्न पार्टियों में जा कर इनके लीडर अपने लिए पद और कुर्सी की भीख मांगते नजर आते हैं. उन्होंने कहा कि जो समाज भीखमंगी में लगेगी उसे भीख ही मिलेगी, नेतृत्व नहीं. अशफाक रहमान ने मुसलमानों की नयी पीढ़ी को इस मानसिकता से निकलने के लिए नये संघर्ष में शामिल होने का आह्वान किया.

By Editor