एक तरफ नीतीश कुमार गांधी जयंती पर दहेज प्रथा खत्म करने की शपथ दिल रहे थे दूसरी तरफ तेजस्वी ने उन पर हमला  बोला है कि अपना चेहरा चमकाने के लिए मीडिया की रिपोर्ट एडिट करवाते हैं और असल मुद्दों पर बात करने के बजाये उनके लोग मुंह में मखमल ठूस लेते हैं.

तेजस्वी ने फेसबुक पर लम्बा पोस्ट लिखा है.राज्य सरकार अब धरातल पर वास्तविक मुद्दों का परित्याग कर एक बार फिर एक व्यक्ति के महिमामण्डन के कार्य में जुट चुकी है। ऐसा प्रतीत होता है कि पूरे राज्य सरकार का अस्तित्व ही इस उद्देश्य को लेकर है कि किन नए नवेले ताम-झाम से मुख्यमंत्री का महिमामण्डन किया जाए। राज्य सरकार का प्रोपगेंडा तंत्र अब यह बताने में जुटा है कि मुख्यमंत्री शराबबंदी के बाद बाल विवाह और दहेज प्रथा को खत्म करने के संकल्प के साथ आगे बढ़ेंगे। महागठबंधन सरकार ने शराबबंदी लागू की पर मुख्यमंत्री की हठधर्मिता की वजह से शराबबंदी पूर्ण लागू नहीं हुई प्रतीत होती है। अगर नालंदा का कोई इनका निजी व्यक्ति शराब का स्टॉक रखते हुए पकड़ा जाता है तो मुख्यमंत्री इस क़ानून को लागू करने वाले विभागीय प्रधान सचिव को ही हटा देते है।

शराब बेच रहे बच्चे

तेजस्वी ने कहा कि बिहार में प्रतिदिन लाखों लीटर शराब पकड़ी जा रही है। स्कूल जाने वाले बच्चे शराब बेचने लग गए है। पूरा पुलिस महकमा अपराध कंट्रोल करने की बजाय शराबबंदी के नाम पर वसूली करने में लगा है। शराबबंदी कानून को Draconion Law की संज्ञा देने वाले सत्ता के मखमल को मुँह में ठूँसकर चुपचाप आज सरकार में सहयोगी बने बैठे हैं।

बाल विवाह नहीं फिर भी शोर

बाल विवाह जिसका अब राज्य में नहीं के बराबर अस्तित्व रह गया है उसे भी जबर्दस्ती मिटाने की कसम खा कर ये बस अपनी तथाकथित उपलब्धियों की दिखावटी सूची को लम्बा करना चाहते हैं। बाल विवाह अगर कहीं होता भी है तो उसका सबसे बड़ा कारण अशिक्षा होता है। और सूबे में शिक्षा का बंटाधार किसने किया है, यह किसी से छुपा नहीं है। अगर पिछले 12 साल में राज्य में बस खानापूर्ति के नाम पर शिक्षा की यह दुर्दशा नहीं की गयी होती तो राज्य ने अपनी आधे से अधिक समस्याओं से निजात यूँ ही पा लिया होता।

गांधी के हत्यारों के साथ

 

तेजस्वी ने कहा कि मुख्यमंत्री से विनम्र अनुरोध है कि स्वार्थ सिद्धि हेतु ढकोसला ही सही, अब जब इन्होंने गाँधी जी के हत्यारों, गोडसे पूजकों, दलित पिछड़ा शोषकों, फिरकापरस्त ताकतों से हाथ मिला कर सत्तासुख भोगते रहने का हठ कर ही लिया है तो कम से कम गाँधी जी के नाम को दुषित करना छोड़ दें। यह आडम्बर शुरू करने का दिन गाँधी जयंती कतई नहीं रखना चाहिए था। मुख्यमंत्री प्रत्यक्ष रूप से अपनी सत्तालोलुपता की प्यास मिटाने के लिए गाँधी जी का इस्तेमाल कर रहे हैं और साथ ही साथ गाँधी जी के हत्यारों, उनके विचारों और आदर्शों का उपहास करने वालों को भी मदद पहुँचा रहे हैं। मुख्यमंत्री जी, गाँधी जी के नाम को बेचना बंद करें।

हर बिहारवासी बिहार में हर कुरीति का अंत चाहता है पर कोई इसके लिए नीतीश कुमार जी वाले स्वकेन्द्रित मार्गों का समर्थक नहीं है, जिनका लक्ष्य, लक्ष्य तक पहुँचना नहीं होता है बल्कि ईमानदारी का ढोंग करते हुए सिर्फ़ एक व्यक्ति को आसमान में बिठाना होता है । बिना कार्ययोजना के, अनमने ढंग से गाहे बगाहे नित नए संकल्प की बात की जाती है। बिना सोचे समझे कानून बनाए जाते हैं जिसका लक्ष्य प्राप्ति के सम्बंध में रत्ती भर भी असर नहीं दिखता है, बस जनता और बेगुनाहों को फँसाने, धमकाने, वसूली करने, दुश्मनी निकालने और कमाई करने का बहाना बन जाता है। अफसरशाही लादने का बहाना बन जाता है। जनता पीसते जाती है।

सच छुपाने के लिए मीडिया रिपोर्टों की CMO से एडिटिंग करवाई जाती है और CM अपना झूठा महिमामण्डन करवा-करवा कर किसी प्रकार स्वयं को युगपुरुष कहलवाने में भिड़े रहते हैं। शराबबंदी के बहाने भी यही किया गया और बाल विवाह और दहेज प्रथा के निराकरण के नाम पर बस इसी स्वार्थ प्रेरित मंशा के साथ आगे बढ़ा जा रहा है।

By Editor