किसी के जिस्म से लिपटी थीं ख्वाब मे आंखें/ नजर गुनाह में थी और सवाब में आंखें, तुराज की गजलों से झूम उठा पटना
किसी के जिस्म से लिपटी थीं ख्वाब मे आंखें/ नजर गुनाह में थी और सवाब में आंखें, तुराज की गजलों…
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किसी के जिस्म से लिपटी थीं ख्वाब मे आंखें/ नजर गुनाह में थी और सवाब में आंखें, तुराज की गजलों…
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