जिस तलाक बिल को भाजपा ने लोकसभा में सात घंटे में पास करवा लिया वही बिल राज्यसभा में उसके गले की हड्डी नब गया है. लोकसभा में विपक्ष भी साथ था. लेकिन राज्यसभा में उसकी सहयोगी तेलुगु देशम पार्टी ने भी उसे आंख दिखा कर चक्रव्यूह में फंसा दिया है.
इर्शादुल हक, एडिटर, नौकरशाहीडॉटकॉम
सच पूछिए तो तलाक बिल पर भाजपा को उसके सहयोगी दल तेदपा ने मुंहकुरिये धकिया दिया है. उधर कांग्रेस ने अपनी गहरी रणीति से भाजपा के रणीतिकारों की सांसें फुला दी हैं. भाजपा इस पूरे खेल में चित्त होती दिख रही है, गच्चा खा गयी है.
कांग्रेस ने दी रणनीतिक पटखनी
दिसम्बर के आखिरी हफ्ते में सरकार ने तलाक बिल लोकसभा में पेश किया. लोक सभा में उसे पर्याप्त बहुमत है. ऐसे में विपक्षी दलों द्वारा इस पर विरोध करने का कोई औचित्य नहीं रह जाता. कांग्रेस को पता था कि वह लोकसभा में इसका विरोध करे तो भी भाजपा इस बिल को वहां पास करवा लेगी. लिहाजा कांग्रेस ने इस पर रणीतिक खेल खेला. इस खेल का भाजपा को आभास तक नहीं हुआ. कांग्रेस ने इस बिल को जस का तस समर्थन दिया.
तलाक बिल, मुस्लिम महिलाओं को एक बार में तीन तलाक कहके निकाह विच्छेद करने को अपराध घोषित करता है. ऐसा करने पर पति को तीन साल की कैद का प्रावधान है. मुस्लिम संगठन इस तरह की सजा के खिलाफ हैं. आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि अगर एक बार में तीन तलाक कहने से तलाक नहीं होता तो फिर पति को सजा क्यों. और अगर उसे सजा हो जायेगी तो पत्नि का भरणपोषण तीन सालों तक कौन करेगा? अगर सरकार इस मामले में ईमानदार है और मुस्लिम महिलाओं के लिए हमदर्द है तो इसकी व्यवस्था उसे करनी चाहिए. मुस्लिम संगठनों के ये ऐसे प्रश्न हैं जिन्हें उन्होंने तमाम विपक्षी पार्टियों के समक्ष रखा. लिहाजा कांग्रेस ने इस बिल की संवेदनशीलता को समझा. और उसने तमाम विपक्षी पार्टियों से बात की. मुस्लिम संगठनों के इन प्रश्नों से भाजपा की सहयोगी तेलुगु देशम पार्टी भी सहमत थी. तेदपा के नेता व आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नाइडू ने राज्यसभा में अपना पाला बदल लिया. तेदपा ने कांग्रेस, सपा, राजद, बीजद जैसी अन्य पार्टियों के साथ तलाक बिल के खिलाफ परचम उठा लिया.
लोकसभा में इस बिल को पास कराकर उत्साहित भाजपा इस मुगालते में रही कि राज्यसभा में भी सब ठीक ठाक रहेगा. लेकिन जैसे ही यह मामला राज्यसभा में आ, तो उसे हकीकत से सामना हुआ. राज्य सभा में भाजपा व उसके सहयोगियों को बहुमत नहीं है. बिल पास कराने के लिए उसे विपक्ष पर निर्भर होना है.
पर पीड़ा से आनंद लेने के जुगत में भाजपा
इस मामले में कांग्रेस ने अपनी राजनीतिक गोटी बड़े सधे अंदाज में चली. लोकसभा में बिल का समर्थन दे कर वह बताना चाहती थी कि वह तीन तलाक के खिलाफ है. ऐसा करके वह भाजपा के उस प्रचार का मुंहतोड़ जवाब देने की पोजिशन में आ गयी है. वह भाजपा को सार्वजनिक मंचों से कह सकती है कि तलाक बिल पर उसने सरकार का समर्थन किया. लेकिन राज्यसभा में उसने इस बिल की खामियां गिनवाई. बताया कि परिवार से जुड़े वाद को अपराध की श्रेणी में रखना, भाजपा की चाल है. बकौल असदुद्दीन ओवैसी वह एक समुदाय की पीड़ा पहुंचा कर आनंदित होना चाहती है. लिहाजा कांग्रेस और यहां तक कि भाजपा की सहयोगी तेदपा ने साफ कह डाला है कि इस बिल को सेलेक्ट कमेटी को भेजा जाये. यह कमिटी इस बिल का अध्ययन करे. फिर मुनासिब संशोधन के साथ इसे पेश किया जाये.
उधर भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद जो खुद कानून मंत्री हैं, कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि इसे फरवरी तक कानून का दर्जा दे दिया जाये. वह कांग्रेस को संसदीय परम्परा की याद दिला रहे हैं. लेकिन भाजपा तलाक बिल पर मुस्लिम महिलाओं के हक की चिंता करने के बजाये मुस्लिम विरोध की राजनीति ज्यादा कर रही है. अगर उसे तलाक से पीडित महिला की चिंता होती तो वह यह जरूर सोचती की पति के जेल रहने की स्थिति में तीन साल तक पत्नी का पेट कैसे चलेगा. दूसरी तरफ मुसलमानों के आक्रोश को भाजपा की सहयोगी तेदपा समझती है. उसे पता है कि 2014 में 16 सीटों पर मिली उसकी जीत में मुसलमानों का बड़ा सहयोग रहा है. दूसरी तरफ कांग्रेस समते तमाम विपक्षी पार्टियां अगर भाजपा के इस बिल के समर्थन में आ गयीं तो उन्हें भी अगले चुनाव में खामयाजा भुगतना पड़ेगा.
ऐसे में यह देखना है कि तलाक बिल का भविष्य क्या होता है.