इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ने की प्रवृत्ति

इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ने की प्रवृत्ति

इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ने की प्रवृत्ति

इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ कर देखने की प्रवृत्ति न सिर्फ पूरी तरह से बेबुनियद है बल्कि इस्लाम के प्रति आम लोगों को गुमराह करने का प्रयास है.

यह एक गंभीर चिंता का विषय है कि मौजूदा समय में मुसलमानों को उनकी दयालुता, भाईचारा और सहनशीलता को दरकिनार कर कथित रूप से हिंसा और आतंकी गतिविधियों से जोड़ दिया जाता है.

कुछ अतिवादी और भटके हुए लोग मुसलमानों के रहन-सहन और यहां तक कि उनकी पोशाक ( टोपी, दाढ़ी, पायजामा) आदि के चलते उन्हें संदेह की नजर से देखते हैं. जब कि कुरान साफ कहता है कि जहां हिंसा है, नफरत है, टकराव है  वहां इस्लाम का कोई वजूद नहीं है. आतंकवाद और इस्लाम का वही रिश्ता है जो आग और पानी का है.

 

जिहाद का अर्थ टकराव या यु्द्ध नहीं बल्कि पवित्र मकसद की प्राप्ति के लिए संघर्ष का नाम है

इस्लाम का सच्चा अनुयायी हमेशा प्रेम और सद्भावना का संदेश ही फैलाता है. सीन-लाम-मीम का अर्थ है कि  खुदको और दूसरों की हिफाजत करो. हदीस ए पाक में है कि  सच्चा मुसलमान वह है जिसके हाथों से किसी को कोई पीड़ा या तकलीफ भी ना हो.

 

आत्मघाती हमला: इस्लाम के अनुसार हराम व इंसानियत के खिलाफ अपराध

एक सच्चा मुसलमान वह है जो हमेशा अपने वतन के लिए अपनी जान कुर्बान करने के लिए तैयार हो और जो अपने देश के लोगों की हिफाजत अपनी जान की बाजी लगा कर करे. इस्लाम इस बात की शिक्षा देता है कि हर व्यक्ति से प्रेम करो, मुहब्बत के पैगाम फैलाओ और दूसरे का सम्मान करो.

मुसलमानों की यह जिम्मेदारी है कि वह  इस्लाम की इस शिक्षा को समझे, इस पर अमल करे और इस्लाम के संदेश को गैरमुस्लिमों तक पहुंचाये.

सच्चा धार्मिक व्यक्ति कट्टरता एंव संकीर्णता से मुक्त होता है

 

By Editor


Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (0) in /home/naukarshahi/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427