तेजस्वी यादव ने एक तरफ नीति आयोग को लताड़ा लगाई है तो दूसरी तरफ कहा है कि नीतीश कुमार के विकास के बिहार मॉडल की धज्जी उड़ गयी है.
तेजस्वी ने कहा कि नीति आयोग के सीईओ ने अज्ञानतावश बड़े ही दुर्भाग्यपूर्ण रूप से एक गैरजिम्मेदाराना बयान दिया है कि बिहार, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे राज्यों ने ही देश में प्रगति के रफ्तार को कम कर दिया है। यह साफ दिखाता है कि नीति आयोग के अधिकारी देश की सामाजिक-आर्थिक ज़मीनी हक़ीक़त से एकदम अनजान हैं। यही कारण है कि अभी तक नीति आयोग ने सिर्फ़ बहानेबाजी और समस्याएँ गिनाने के अलावे और कुछ नहीं किया है।
नीति आयोग ने एक तरह से नीतीश कुमार के बिहार मॉडल की धज्जियाँ उड़ा दी है। एमपी, छत्तीसगढ़ में तो 15 साल से भाजपाई सरकारें है।
तेजस्वी ने फेसबुक पर लिखे अपने पोस्ट में कहा है कि ‘बिहार और बिहारी बराबर टैक्स देते हैं. राष्ट्र निर्माण में बराबर हिस्सेदारी रखते हैं. एनडीए को बिहार ने 33 सांसद दिए हैं. सात केंद्रीय मंत्री बिहार से आते हैं. केंद्र और बिहार एक ही गठबंधन की सरकार है. फिर बाबू (अफसर) कहते हैं कि बिहार पिछड़ा हुआ है जो कि राज्य में तेरह साल से भाजपा और जद यू की तथाकथित ब्राण्ड बिहार वाली सुशासन सरकार है। ऐसा सुशासन जिसने ना कोई नौकरियाँ उत्पन्न की, ना कोई निवेश ला पाए और कानून व्यवस्था की हालत ना पूछो तो ही बेहतर! ऊपर से शिक्षा और स्वास्थ्य का बंटाधार! नौकरी के नाम पर नियोजन और ठेके की अस्थायी नौकरियों में मानव संसाधन का शोषण और वेतन के बदले गुजरात मॉडल मार्का फिक्सड सैलरी! यह सुशासन तो value deficient PR wonder से अधिक और कुछ नहीं!
उन्होंने कहा कि साफ है कि नीतीश बाबू का सुशासन बाबू के रूप में महिमाण्डन सिर्फ प्रचार, प्रभाव और PR की बैसाखियों पर ही टिका है, ज़मीन पर किसी भी प्रकार के आमूलचूल परिवर्तन पर नहीं। लोगों के जीवनस्तर और उन्हें सबसे अधिक प्रभावित करने वाली ज़रूरी सुविधाओं व अवस्थाएँ जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, नौकरी, आजीविका की स्थिति बद से बदतर ही होती चली गयीं हैं।
तेजस्वी ने अपने लम्बे लेख में कहा है कि नीति आयोग के इस बयान पर नीतीश कुमार जी सामने आएँ और बिहार की जनता को बताएँ कि नीति आयोग झूठ बोल रहा है। नीति आयोग की कड़े शब्दों में आलोचना करें। जिस बिहार के लोग अपने खून पसीने से राष्ट्र की समृद्धि और सामरिक शक्ति में वृद्धि करते हैं, उनके योगदान को कमतर आँक कर नीति आयोग ने बिहारी अस्मिता और कर्मठता को अपशब्द कहा है। राज्य के निवासियों का मनोबल तोड़ने वाले और उनके योगदान को कमतर आँकने वाले बयान के विरुद्ध मुख्यमंत्री जी कुछ बोलने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पा रहे हैं?