कर्नाटक में भाजपा बेआबरू हो चुकी है. मोदी सरकार चार साला जश्न में सहयोगियों को मनुहारी भोज परोस रही है. पर कुछ सहयोगी शामिल होने से इनकार कर रहे हैं. ठीक इसी वक्त राहुल-तेजस्वी 2019 की एक वृहद रणनीति को आखिरी रूप दे रहे हैं.
[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/06/irshadul.haque_.jpg” ]इर्शादुल हक, एडिटर, नौकरशाही डॉट कॉम[/author]
तेजस्वी का आत्मविश्वास बुलंदियों पर है. मार्च और मई के उपचुनावों ने उनके दामन को खुदऐत्मादी से लबरेज कर दिया है. इन दोनों महीनों हुए उपचुनावों में एक तरफ राजद ने जहां भाजपा को रौंद डाला वहीं मई में जदयू को धूल चटा कर नीतीश के आभामंडल को चुनौती दे डाली. यह भूलना नहीं चाहिए कि ये दोनों जीत लालू की गैरमौजूदगी में, तेजस्वी के नेतृत्व में दर्ज की गयी. अपने दो सबसे बड़े प्रतिद्वंदियों को बारी बारी से शिकस्त ए फास करने के बाद तेजस्वी के कंफिडेंस में इजाफा होना स्वाभाविक है. उधर हार की लम्बी श्रृंखला से टूटने के कगार पर पहुंच चुके राहुल के आत्मविश्वास को गुजरात चुनाव ने संभाला और फिर कर्नाटक में लोकतंत्र की हत्या करने की साजिश करने वालों को राहुल ब्रिगेड ने ध्वस्त करके अपने कंफिडेंस लेवल को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया.
कर्नाटक में राहुल के रणनीतिक नेतृत्व ने, न सिर्फ सत्ता को बरकरार रखा बल्कि उसने उन्हें एक गुरुमंत्र भी दिया. यह गुरुमंत्र है सहयोगियों को ‘सम्मान’ और ‘सहभागिता’ दे कर भाजपा को नकेल कसने का गुरुमंत्र. जाहिर है राहुल इस गुरुंत्र को देशव्यापी स्तर पर आजमाने की कोशिश करेंगे. इसकी शुरुआत उन्होंने बिहार से कर दी है. गुरुवार को राहुल और तेजस्वी की नयी दिल्ली में हुई मुलाकात इसी रणाति का हिस्सा है. राहुल से मिलने के बाद तेजस्वी भी उत्साहित दिखे. राहुल तेजस्वी की हाल के दिनों में यह दूसरी मुलाकात है. पिछले दिनों एक रेस्टोरेंट में खट्टे-मीठे स्वाद का लुत्फ साथ-साथ उठाने वाली इन दोनों की मुलाकात वाली तस्वीर जिन्हें याद है, उन्हें पता चल रहा होगा कि , कल की मुलाकात एक दम अलग थी. रेस्टोरेंट की मुलाकात की जो तस्वीर है उससे महसूस होता है कि वह इंट्रोडक्टरी मुलाकात थी. जिसमें दोनों का मिलना-जुलना एक दूसरे को समझने और आपसी कंफिडेंस बिल्डिंग तक सीमित था. लेकिन गुरुवार की मुलाकात के बाद तेजस्वी ने जो इशारे दिये हैं, उससे तय हो चुका है कि अब राहुल तेजस्वी एक दीर्घकालिक योजना पर आगे बढ़ चुके हैं. भाजपा के खिलाफ सटीक रणनीति ही नहीं बल्कि ठोस वैक्लपिक कार्यक्रम के साथ जनता तक पहुंचने की तैयारी हो रही है. इस आक्रमण की तैयारी में दमदार और यथार्थ की बुनियाद पर टिके मुद्दे तय किये जा रहे हैं. साथ ही इंक्लुसिव व समृद्ध शब्दावलियों को भी ठोक-बजा कर तलाशा जा रहा है. तेजस्वी कहते भी हैं कि “हम यहां सरकार गठित करने के लिए नहीं, बल्कि मौजूदा अधिनायकवादी शासन की मंशा के खिलाफ कमजोरों की जिंदगी बदलने के लिए हैं.हमारे साथ का मकसद संविधान, धर्मनिरपेक्ष- लोकतांत्रिक मूल्यों एवं सामाजिक न्याय के लक्ष्यों की रक्षा करना है. हम लड़ेंगे और जीतेंगे. हम इस सरकार की तरफ से पैदा किए गए डर के माहौल से देश को बाहर निकालने को प्रतिबद्ध हैं. हम किसानों, युवाओं, महिलाओं और गरीबों के लिए प्रतिबद्ध हैं”.
सटीक शब्दावलियों और बुनियादी मुद्दों के महत्व को दोनों नेताओं ने बखूबी समझ लिया है. क्योंकि विगत चार वर्षों में मोदी ने अपने लच्छेदार, पॉपुलर, भावनाओं का दोहन करने, वास्तविक मुद्दों की जगह इमोशनल इश्युज को मुद्दा बना कर वोटरों को मोटिवेट करने वाले भाषणों से ऊब चुके लोगों को बुनियादी मुद्दे की ही अब तलाश है. इस बात को राहुल व तेजस्वी बखूबी अनुभव कर चुके हैं. और ऐसे में अगर तेजस्वी यह कहते हैं कि बस थोड़ा इंतजार कीजिए हम जल्द ही किसानों, नौजवानों, दलितों और गरीबों के लिए ठोस कार्यक्रम की रूप रेखा ले कर आने वाले हैं, तो इसका साफ मतलब है कि राहुल-तेजस्वी की जोड़ी 2019 और 2020 की तैयारियों में जुट चुकी है. कुछ ऐसे ही प्रयास राहुल, यूपी में अखिलेश और मायावती के साथ करने वाले हैं. युवा पीढ़ी के इन नेताओं ने मोदी के भावनात्मक मुद्दों के खिलाफ वास्तविक मुद्दों पर नयी व धारदार आक्रमाकता की सान चढ़ा कर हमला बोलने की रणीनीतिक तैयारी शुरू कर दी है.
स्वाभाविक है कि इस मुलाकात में एनडीए के घटक दलों के बीच उत्पन्न हो रहे आपसवी विवाद पर भी दोनों चर्चा की होगी. हालांकि इस पर तेजस्वी ने कोई प्रेस ब्रीफ जारी नहीं की है, लेकिन ऐसा इस विषय पर भी जरूर विमर्श हुआ होगा कि भाजपा के सहयोगी दलों के संभवाति बिखराव की स्थिति में महागठबंधन का क्या रवैया होना चाहिए.