द गार्डियन ने याद दिलाया, कब्रिस्तान बना, तो श्मशान भी बनेगा
आज फिर भारत में महामारी से निपटने में सरकार की विफलता पर द गार्डियन, द टाइम, अल जजीरा, न्यू यार्कर सहित कई अखबारों में सुर्खियां छपी हैं।
कुमार अनिल
द आस्ट्रेलियन अखबार में महामारी के लिए मोदी को जिम्मेवार बतानेवाले आलेख पर भारत की आपत्ति के दो दिन बाद ही आज फिर दुनिया भर के अखबारों में भारत छाया हुआ है। द गार्डियन में अरुंधती राय का आलेख है- भारत में मानवता के विरुद्ध अपराध हुआ। उन्होंने आलेख की शुरुआत 2017 में उप्र में एक आम सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी के उस बयान से की है कि जब गांवों में कब्रिस्तान बन सकते हैं, तो श्मशान क्यों नहीं बनेंगे। तब भीड़ ने खूब ताली बजाई थी। भीड़ से आवाज आई थी श्मशान-श्मशान। आज वही श्मशान से उठती लपटें अखबारों के पहले पन्ने पर छाई हैं।
द टाइम में राना अयूब का आलेख कवर स्टोरी बना है। शीर्षक है- संकट में भारत, मोदी के कारण कैसे फंसा पूरा देश। अलजजीरा ने लिखा है- कोविड के बीच भारत में ऑक्सीजन का संकट क्यों? अखबार ने लिखा है कि भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुल गई है। ऑक्सीजन तक का संकट है, जबकि यह किसी भी गंभीर रोगी के इलाज के लिए जरूरी है। न्यूयॉर्क टाइम्स, न्यूयार्कर सहित अनेक अखबारों में भारत की महामारी से निबटने के लिए कोई तैयारी नहीं करने और विफलता पर स्टोरी छपी है।
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अधिकतर अखबारों ने सत्ता के घमंड और अतिराष्ट्रवाद को जिम्मेदार माना है, जिसमें भारत की सरकार उलझी रही और महामारी से नेबटने की तैयारी के बजाय इसे खत्म कर देने की खुशफहमी में जीती रही।
द गार्डियन ने लिखा है- भारत के लोग जो तनाव, पीड़ा झेल रहे हैं, उसे शब्दों में रिपोर्ट करना मुश्किल है। वहीं मोदी और उनके समर्थक कह रहे हैं कि इस पीड़ा की चर्चा मत करिए। वाशिंगटन पोस्ट ने हाल में संपादकीय लिखा कि भारत में दूसरी लहर की क्या हम अनदेखी कर सकते हैं। बिल्कुल नहीं। क्योंकि यह भारतीय म्यूटेंट दुनिया में फैल रहा है। वहीं जब यूरोप में दूसरी लहर आई, तब किसी भारतीय ने उसकी चिंता नहीं की, तैयारी नहीं की। उल्टे कोरोना पर जीत मानकर देश आश्वस्त हो गया।