Third phase poll in BIharThird Phase एनडीए की राह कठिन तो महागठबंधन भी फंसा मुश्किल में

Third Phase एनडीए की राह कठिन तो महागठबंधन भी फंसा मुश्किल में

बिहार में तीसरे चरण के लोकसभा चुनाव के बाद जो दृश्य उभर कर सामने आया है उसके अनुसार इस बार ना तो महागठबंधन के खेमे में ज्यादा उत्साह है और न ही एनडीए में.

इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम

बिहार में तीसरे चरण के मतदान के साथ ही अब तक कुल 14 लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव सम्पन्न हो चुका है. पहले दो चरण के मतदान के बाद महागठबंधन के खेमे में उत्साह था. जबकि भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए में सन्नाटा पसरा था. लेकिन तीसरे चरण के मतदान में आज क्या हुआ.हम यह जानने की कोशिश करते हैं.

तीसरे चरण में जिन पांच लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव हुए उनमें अररिया, सुपौल, मधेपुरा, खगड़िया और झंझारपुर शामिल हैं.

अररिया में आरजेडी का कब्जा है.सुपौल सीट पर कांग्रेस, मधेपुरा में पप्पू यादव( तब वह राजद का हिस्सा थे). इस प्रकार महागठबंधन का पिछली बार यानी 2014 में पांच में से तीन सीटों पर कब्जा था.

वहीं दूसरी तरफ अररिया में महबूब अली कैसर लोजपा से जीते थे जबकि झंझारपुर में भाजपा ने जीत हासिल की थी.

 

अब आइए एक-एक कर देखते हैं कि इन पांच लोकसभा क्षेत्रों में आज यानी 23 अप्रैल को सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव का पैटर्न क्या रहा. किस गठबंधन की क्या संभावित स्थिति रही.

अररिया

अररिया एक ऐसा लोकसभा क्षेत्र है जहां मुस्लिम व यादव अगर एक साथ मिल के वोट कर दें तो राजद के सरफराज आलम की जीत पक्की है. यहां सरफराज आलम की टक्कर भाजपा के प्रदीप सिंह से है. 2018 में सरफराज ने प्रदीप सिंह को 61 हजार वोटों से परास्त किया था. इस बार भी मुख्य मुकाबला इन्हीं दो उम्मीदवारों के बीच हुआ. अररिया में अन्य पांच लोकसभा क्षेत्रों से के अनुपात में ज्यादा मतदान हुआ. ज्यादा मतदान  जोकीहट आदी विधान सभा क्षेत्रों में दर्ज किया गया है. जोकिहट का क्षेत्र मुस्लिम बहुल क्षेत्र है.इसलिए सरफराज आलम के खेमे में कुछ ज्यादा ही उत्साह देखने को मिल रहा है.

 

सुपौल-

रंजीत रंजन की मुशक्लि बड़ी

 

सुपौल के हालात कांग्रेस की मौजूदा सांसद रंजीत रंजन के लिए इस बार काफी चुनौती भरा साबित हो रहा है. पिछले बार उन्होंने करीब 62 हजार वोटों से जीत हासिल की थी. उनकी यह जीत तब हुई थी जब जदयू और भाजपा ने 2014 में अलगअलग चुना लड़ा था. लेकिन इसबार जदयू और भाजपा साथ हैं. पिछी बार भी असल टक्कर रंजीता रंजन और जदयू के दिलेश्वर कामैत के बीच थी. इस बार भी असल लड़ाई ऩ दोनों के बीच ही है. लेकिन कामैत के लिए संतोष की बात आज यह रही है कि उनको भाजपा के कैडर वोट भी मिले हैं. 2014 में भाजपा के उम्मीदवार रहे कामेश्वर चौपाल को करीब ढाई लाख वोट मिले थे और वह तीसरे स्थान पर थे. इस तरह कामैत और चौपाल का साझा वोट रंजीता रंजन के लिए मुश्किल खड़ी कर रहा है. दूसरी तरफ इस सीट से राजद के राज्य महासचिव रहे  दिनेश यादव निर्दलीय के रूप में मैदान में हैं. ऐसे में रंजीता रंजन की राह चुनौती भरी है.

 

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मधेपुरा

मधेपुरा यूं तो हर चुनाव में यादव के वर्चस्व के रूप में निखर के सामने आता है. इस बार भी तय है कि यहां यादव का ही पताका लहरायेगा. लेकिन निर्दलीय पप्पू यादव अपनी सीट बचा पायेंगे, यह तभी संभव है जब उन्हें मुसलमानों ने अन्य दो प्रत्याशियों से ज्यादा सपोर्ट करें. यहां पप्पू यादव का मुकाबला राजद के टिकट पर चुनाव लड़ रहे शरद यादव और जदयू के प्रत्याशी दिनेश चंद्र यादव से है.

इस सीट पर 2014 में पप्पू यादव की जीत राजद के टिकट पर हुई थी. लेकिन बाद में पप्पू ने अपनी अलग पार्टी बना ली. जन अधिकार पार्टी. जन अधिकार पार्टी को चुनाव आयोग से मान्यता नहीं मिली है लिहाजा उन्होंने निर्दलीय नामांकन किया है. मधेपुरा के तीन प्रत्याशी इस सीट का कभी न कभी प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. दिनेश चंद्र यादव 1996 और 1999 में रहनुमाई कर चुके हैं. इस बार पहली बार हुआ है कि पप्पू राजद से अलग हो कर इस सीट पर नुमाइंदगी करना चाहते हैं. ऐसे में राजद के कैडर वोट से उन्हें वंचित होना पड़ सकता है. आज हुए मतदान के बाद मधेपुरा के इन तीन यादवों की टक्कर काफी जटिल हो गयी है. ऐसे में किसी के लिए भी यह कह पाना आसान नहीं कि यहां किसकी जीत होती है.

 

झंझारपुर

झंझारपुर इस बार बिहार का एक ऐसा लोकसभा क्षेत्र के रूप में उभरा है जो चुनावी जंग के पहले ही काफी उलझाव वाली स्थिति से गुजर चुका है. इस उलझाव की सबसे बड़ी वजह यह है कि यहां से 2014 में जिस प्रत्याशी (भाजपा के वीरेंद्र चौधरी) को जीत मिली है उन्हें इस बार टिकट तो नहीं ही मिला, जबकि दूसरे स्थान पर रहने वाले राजद के रामप्रीत मंडल भी टिकट से वंचित कर दिये गये हैं. एनडीए की तरफ से यह सीट जदयू के खाते में तो गयी है और जदयू ने भी अपने निवर्तमान प्रत्याशी देवेंद्र यादव को टिकट नहीं दिया. नतीजा यह हुआ कि देवेंद्र यादव निर्दलीय के रूप में मैदान में उतर चुके हैं.

राजद ने रामप्रीत मंडल की जगह गुलाब यादव को टिकट दिया है. ऐसे में यहां की लड़ाई अप्रत्याशित सी हो गयी है क्योंकि जदयू अपने बागी उम्मीदवार देवेंद्र यादव से परेशान है. जबकि उसे भाजपा के कैडर वोट के बारे में कहा जा रहा है कि वह बड़े पैमाने पर जदयू के प्रत्याशी रामप्रीत मंडल की तरफ ट्रांस्फर होने के बजाये देवेंद्र यादव और राम्प्रीत मंडल के बीच शेयर हुआ है.

ऐसे में झंझारपुर में भी मधेपुरा की तरह कोई स्पष्ट रुझान सामने नहीं आ रहा है.

खगड़िया

लोजपा के महबूब अली कैसर और राजद गठबंधन की तरफ से वीआईपी के मुकेश सहनी मैदान में हैं. महबूब वर्तमान सांसद हैं. लेकिन इस बार उनकी चुनौती काफी गंभीर है. क्योंकि पिछली बार वहां से जदयू ने भी अपना यादव प्रत्याशी खड़ा किया था और राजद ने भी.

राजद की कृष्णा यादव दूसरे स्थान पर रहीं थी. यादवों का वोट दो टुकड़ों में बंट गया था और इसका लाभ महबूब अली कैसर को मिला था. लेकिन इस बार यहां से कृष्णा यादव को राजद ने नहीं उतारा. यह सीट वीआईपी के मुकेश सहनी के खाते में गयी है. यहां पर मुसलमानों का वोट महबूब अली कैसर और मुकेश सहनी के बीच बंटने की संभावना जताई जा रही है. वोट तो यादवों का भी बंटा है लेकिन ज्यादा वोट मुकेश की तरफ टर्नअप हुआ माना जा रहा है. दूसरी तरफ मलाहों का वोट जो पिछली बार लोजपा की तरफ गया  था, माना जा रहा है कि मल्लाहों के वोट का बड़ा हिस्सा मेकेश सहनी को मिला है.

ऐसे में मुकेश सहनी की स्थिति खगड़िया में मजबूत मानी जा रही है.

By Editor


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