तीन तलाक कानून: मोदी-शाह युगीन भाजपा के अहंकार की तृप्ति के सिवा कुछ नहीं
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
तीन तलाक यानी तलाक ए बिद्दत के खिलाफ मोदी सरकार ने आखिरकार कानून बनाने में कामयाबी हासिल कर ली. भारतीय संसद के इतिहास में कानून बनाने के लिए ऐसी जिद्द, ऐसी हठधर्मिता और सत्ताधारी दल द्वारा अपने अहंकार की तृप्ति की मिसाल संभव है कि पहली बार देखी गयी हो.
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भाजपा के अहंकार की तृप्ति
मेरा मानना है कि ट्रिपल तलाक (एक ही बार में तीन तलाक कहके पत्नी को छोड़ देना) मामले में मोदी सरकार ने अपनी राजनीतिक शक्ति के अहंकार की तृप्ति कर ली है. ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि तलाक संबंधी बिल को लोक सभा में तीन बार लाया गया. तीनों बार यहां से इसलिए पास हो गया क्योंकि भाजपा को यहां जबर्दस्त बहुमत है. लेकिन यह बिल राज्यसभा से रिजेक्ट हो गया. दूसरी बार जब मोदी सरकार को यह आभास हो गया कि यह बिल फिर राज्यसभा में खारिज हो जायेगा, लिहाजा इसने अपनी राजनीतिक शक्ति के अहंकार की तृप्ति के लिए फरवरी 2019 में राष्ट्रपति के द्वारा अध्यादेश जारी कर इसे कानून का रूप दिलवा दिया.
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इससे पहले दिसम्बर 2017 और फिर दिसम्बर 2018 में यह बिल लोकसभा में पेश किया जा चुका था. चूंकि यह बिल राज्यसभा में नामंजूर हो गया इसलिए राष्ट्रपति का अध्यादेश के द्वारा इसे कानूनी रूप दिया गया. चूंकि अध्यादेश कानून की शक्ल इख्तेयार करने के लिए स्थाई नहीं होता, लिहाजा तीसरी बार इस बिल को राज्यसभा से पारित करवाना था. इस बार उसने कुछ नये दलों को जोड़ा और उन्हें राजी करके इस बिल को पास करवा लिया. अब ट्रिपल तलाक एक अपराधिक जुर्म बन चुका है और तीन तलाक कहके पत्नी को छोड़ने की सजा तीन साल मुकर्रर कर दी गयी है.
जदयू की पलटमारी की रवायत
इस बिल के समर्थन के लिए भाजपा सरकार को काफी मशक्कत करनी पड़ी. इसबार उसे बीजु जनता दल के रूप में नया साथी मिला. जबकि उसके पुराने साथ जनता दल यू ने सार्वजनिक रूसे से इस बार भी विरोध करने की घोषणा की थी लेकिन जदयू ने अपने वादे की लाज नहीं रखी और वादे से मुकरते हुए उसने अपना स्टैंड बदल लिया. जदयू ने वोटिंग का बहिष्कार किया. जिसका सीधा लाभ भाजपा को मिला क्योंकि सदन में उसकी अनुपस्थिति के कारण इस बिल को पास कराना आसान हो गया.
वैसे बसपा, पीडीपी ने भी वोटिंग का बहिष्कार किया. लेकिन इन दो दलों से कोई उम्मीद भी नहीं थी. इस मामले में राष्ट्रीय जनता दल ने अपनी भूमिका को मजबूती से सदन में पेश किया और उसने राज्यसभा में तलाक बिल का विरोध किया.
तीन तलाक की इस्लामी हैसियत
दर असल तीन तलाक को अरबी में तलाक ए बिद्दत कहा गया है. बिद्दत का अर्थ है बदतरीन या सबसे बुरी. ध्यान रहे कि इस्लाम ने खुद इसे बदतरीन रूप का तलाक कहा है. ऐसे में मुसलमानों के अंदर खुद भी इस तलाक को बुरा माना गया है. विपक्षी पार्टियों और मुस्लिम संगठनों का तर्क है कि तलाक के मामे को अपराधिक श्रेणी में डालना बिल्कुल उचित नहीं है. इसेकी सजा जेल के बजाये जुर्माना के रूप में निर्धारित की जा सकती थी. लेकिन मोदी-शाह युगीन भाजपा के अहंकार की तृप्ति इससे नहीं होने वाली थी. वह दर असल मुसलमानों को डिमोरलाइज करने के अपने मिशन पर काम कर रही थी और इसमें उसे सफलता भी मिली.
इस में संदेह नहीं कि तलाक का सबसे बड़ा नकारात्मक असर पत्नी पर ही पड़ता है. सरकार अगर इस मामले में संवेदनशील, ईमानदार और महिलाओं के प्रति सहानुभूति रखने वाली होती तो पति को तीन साल की सजा दे कर प्रभावित महिला के ऊपर ही जुल्म ना करती. क्योंकि तीन तलाक देने वाला पति अगर जेल चला जायेगा तो उसकी पत्नी की रोजी-रोटी का इंतजाम कौन करेगा. यह एक बड़ा प्रशन बन कर आने वाले दिनों में समाज के सामने खड़ा होगा. जिसका सामना इस देश को ही करना है.