उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि पार्टी ने 10 सीटों के लिए 30 मंत्रियों तथा 15 वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदारी दी है। उपचुनाव की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी एक विधानसभा सीट के प्रभारी बने हैं। वह सीट है मिल्कीपुर। उपचुनाव के परिणामों से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भविष्य तय होगा। इधर समाजवादी पार्टी तथा कांग्रेस ने भी हर सीट के लिए प्रभारी तय कर दिए हैं।
इन दस सीटों के उपचुनाव के परिणाम से यूपी की राजनीति की दिशा तय होगी। अगर भाजपा अच्छा प्रदर्शन करती है, तो मुख्यमंत्री की स्थिति मजबूत हो जाएगी। जाहिर है लखनऊ से लेकर दिल्ली तक योगी के खिलाफ वाला गुट कमजोर होगा। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य मुख्यमंत्री के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं। माना जाता है कि उन्हें दिल्ली में बड़े नेताओं का समर्थन है। यहां तक कहा जाता है कि अमित शाह का उन्हें समर्थन प्राप्त है। उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन से योगी मजबूत होंगे तथा मौर्य और उनके पीछे ताकत देनेवाले दिल्ली के बड़े नेता कमजोर होंगे।
अगर इन उपचुनावों में भाजपा का प्रदर्शन खराब रहता है, तो मौर्य की स्थिति मजबूत हो जाएगी। इसका परिणाम होगा कि मुख्यमंत्री को हटाने की मुहिम तेज हो जाएगी। शायद इसीलिए खुद योगी ने भी एक विधानसभा सीट का प्रभार अपने हाथ में लिया है। वे चाहेंगे कि मिल्कीपुर में भाजपा जीते। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो मुख्यमंत्री की फजीहत हो सकती है।
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इधर समाजवादी पार्टी ने भी इन उपचुनावों को गंभीरता से लिया है। सपा के अयोध्या से चर्चिंत सांसद अवधेश प्रसाद को भी एक विधानसभा सीट का प्रभारी बनाया गया है। दोनों तरफ से दिग्गजों को प्रभारी बनाया गया है। हालत यह है कि प्रत्याशी से ज्यादा चर्चा प्रभारियों की हो रही है।
दरअसल लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली करारी हार के बाद प्रदेश भाजपा में संकट बढ़ा। यूपी की 80 में 80 सीट जीतने का दावा करने वाली भाजपा आधी सीट भी नहीं जीत पाई। वह सिर्फ 33 पर सिमट गई, जबकि सपा ने 37 सीट जीत ली। इस हार को भाजपा पचा नहीं पाई और हार की जिम्मेदारी योगी आदित्यनाथ के सिर मढ़ने की कोशिश हुई, जिसे योगी ने अपने सिर लेने से इनकार कर दिया। इसके बाद भाजपा में कलह बढ़ गई। केशव प्रसाद मौर्य ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मोर्चा खोल दिया, तो मुख्यमंत्री भी अड़ गए। भाजपा के भीतरी कलह की दृष्टि से 10 सीटों के चुनाव का महत्व बढ़ जाता है।