बिहार की शिक्षा का सर्वनाश करने का नीतीश कुमार पर आरोप लगाने वाले केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री अचानक नर्म क्यों पड़ गये हैं? क्या भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने अपनी जुबान उनके मुंह में डाल दी है?
इर्शादुल हक
केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा, बिहार में शिक्षा व्यवस्था के चौपट होते जाने पर सख्त चिंतित रहे हैं. इस कारण वह बिहार सरकार की शिक्षा नीति के घोर आलोचक रहे हैं. वह सीधे तौर पर नीतीश कुमार पर प्रहार करते रहे हैं. ऐसे नहीं है कि उन्होंने इस तरह की आलोचना, नीतीश कुमार के एनडीए में शामिल हो जाने के बाद करना बंद कर दी. सच्चाई यह है कि जब नीतीश कुमार एनडीए के समर्थन से चीफ मिनिस्टर बन गये, तो भी उनका प्रहार जारी रहा.
लेकिन शनिवार को कुशवाहा के सुर एकदम बदले-बदले से थे. उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस बुलाई और कहा कि बिहार में शिक्षा के हालात अब सुधरने लगे हैं. वह यहीं नहीं रुके. बोले कि 27 सालों के बाद अब केंद्र और राज्य में एक ही गठबंधन की सरकार है. अब शिक्षा व्वस्था में सुधार होना तय है.
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हालांकि यहां याद रखना होगा कि यह उपेंद्र कुशवाहा ही हैं जिन्होंने 27 जुलाई के बाद भी दो बार बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर हमला बोल चुके हैं. 27 जुलाई को नीतीश कुमार एनडीए के मुखय्यमंत्री की हैसियत से शपथ ले चुके थे. इससे पहले उपेंद्र कुशवाहा के दो बयान काबिले जिक्र हैं. एक बयान में उन्होंने कहा था कि नीतीश कुमार ने बिहार की शिक्षा का सर्वनाश कर दिया है. यह बात उन्होंने तब कही थी जब अलग-अलग परीक्षा परिणामों में लगातार घोटाले उजागर हुए थे. कुशवाहा शिक्षक बहाली की प्रक्रिया के भी सख्त आलोचक रहे हैं. हां यह ठीक है कि कुशवाहा ने यह आलोचना नीतीश के एनडीए में शामिल होने के पहले की थी. लेकिन अब जरा उनके दूसरे बयान पर गौर फरमाइे. जब नीतीश कुमार, भाजपा गठबंधन के साथ सरकार बनाने की रणनीति पर काम कर रहे थे तो कुशवाहा उनके इस कदम से काफी चिंतित थे. 16 जुलाई का उनका बयान उनकी चिंता को जाहिर करता है. कुशवाहा ने कहा थे, कि नीतीश कुमार जिस नाव पर बैठते हैं उसका डूबना तय है. कुशवाहा यह बयान दे कर अपनी नाराजगी जता रहे थे कि नीतीश, मुख्यमंत्री बने रहने के लिए जोड़-तोड़ कर रहे हैं.
लेकिन गुरुवार का उनका यह बयान, नीतीश कुमार के प्रति, उनके रवैये में आये अचानक परिवर्तन को दर्शाता है.
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उपेंद्र कुशवाहा, एनडीए में रहते हुए भी अपने जमीर की आवाज सामने लाने के लिए जाने जाते रहे हैं. एनडीए में रहते हुए वह निजी क्षेत्र में आरक्षण काे समर्थन में आवाज उठाते हैं, जिसका साहस कोई और नहीं कर पाता. वह एनडीए में रहते हुए, भाजपा द्वारा साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के खिलाफ आवाज उठाने से नहीं चूकते. लेकिन बिहार की जिस शिक्षा व्यवस्था के वह 27 जुलाई के बा भी आलोचक रहे, अचानक उनके रुख में परिवर्तन क्यों हो गया? इस सवाल का जवाब तो वही जानें, लेकिन लगता है कि एनडीए के शीर्ष नेताओं के दबाव में उन्हें अपने रुख में परिवर्तन करना पड़ा है. तो क्या उपेंद्र कुशवाहा, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के दबाव में आ गये हैं? सवाल यह भी है कि क्या भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें हड़काया है कि अब वह बिहार सरकार की शिक्षा नीति की आलोचना न सिर्फ बंद करें, बल्कि अब सकारात्मक टिप्पणी करें?
उपेंद्र कुशवाहा अपनी बातों को कहने से गुरेज नहीं करने वाले नेता के रूप में जाने जाते हैं. लेकिन उनके इस रुख में आये परिवर्तन के बाद यह लगता है कि उनके मुंह में किसी और जुबान आ गयी है. अगर ऐसा है तो यह उपेंद्र कुशवाहा के राजनीतिक दृष्टिकोण में आये बदलाव को इंगित करता है.