भारतीय धार्मिक रीति-रिवाजों में कई अवसरों पर किये जाने वाले व्रत की परम्परा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किये गये शोध में वैज्ञानिक आधार मिला है। चिकित्सकों ने दावा किया है कि उपवास रखने से कैंसर समेत कई गंभीर बीमारियों से बचाव हो सकता है और लंबा एवं स्वस्थ जीवन जिया जा सकता है।
विश्व के कई देशों की संस्कृति में भी उपवास का प्रचलन है और हर जगह इसके मायने अलग-अलग हैं। आम लोग धर्म और तीज-त्योहारों का हिस्सा मानकर उपवास की संस्कृति का पालन करते रहे हैं, लेकिन विज्ञान इसे गंभीर बीमारियों के खिलाफ ‘घातक’हथियार के रुप में देख रहा है। आज भी देश में ऐसे कई बुजुर्ग मिल जायेंगे जो 90 की उम्र पार कर गये हैं और किसी तरह की दवा नहीं लेते हैं। यह जीवन शैली से जुड़ी उपलब्धि है जिनमें उपवास भी एक महत्वपूर्ण कारक है और यह वर्तमान पीढ़ी के उलट है, जहां बच्चे भी उच्चरक्त चाप, मधुमेह, दिल का दौरा आदि गंभीर रोगों के शिकार हो रहे हैं।
चिकित्सा के लिए वर्ष 2016 के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित जापान के जीवविज्ञानी योशिनोरी ओसुमी ने ऑटोफैगी की प्रक्रिया की खोज की है। उन्होंने शोध किया है कि मानव शरीर की कोशिकाएं किस तरह, क्षतिग्रस्त एवं कैंसर समेत कई बीमारियों के जिम्मेदार कोशिकाओं को स्वयं नष्ट करती हैं।
स्वास्थ्य के लिए उत्तम ‘तंदुरुस्त’ कोशिकाओं का पुनर्निर्माण करती है और उन्हें ऊर्जावान बनाती हैं। यह प्रक्रिया ‘ऑटोफैगी’ कहलाती है। योशिनोरी को ऑटोफैगी की प्रक्रिया की खोज के लिए नोबल पुरस्कार दिया गया है। नोबल पुरस्कार की घोषणा के समय ज्यूरी ने जापानी जीवविज्ञानी के शोध पर प्रकाश डालते हुए कहा था,“इस प्रक्रिया में कोशिकाएं खुद को खा लेती हैं और उन्हें बाधित करने पर पार्किंसन एवं मधुमेह जैसी बीमारियां हो सकती हैं। ऑटोफैगी जीन में बदलाव से बीमारियां हो सकती हैं। इस प्रक्रिया के सही तरह से नहीं होने से कैंसर तथा मस्तिष्क से जुड़ी कई गंभीर बीमारियों की आशंका कई गुना बढ़ जाती हैं।” ‘ऑटोफैगी’ ग्रीक शब्द है। यह शब्द ‘ऑटो’ और ‘फागेन’ से मिलकर बना है। ऑटो का मतलब है ‘खुद’ और ‘फागेन’ अर्थात खा जाना।
इस शोध से भारतीय संस्कृति के वैज्ञानिक होने की काफी हद तक पुष्टि होती है और संभवत: ऋषि-मुनियों इसके महत्व को समझ कर ही कई-कई साल तक अन्य त्यागे और लंबी आयु पायी। शोध के अनुसार उपवास करने से ऑटोफैगी की प्रक्रिया बढ़ती है।