केंद्र की एनडीए सरकार ने लोकसभा में वक्फ एक्ट में संसोधन का बिल पेश किया। बिल का इंडिया गठबंधन के दलों ने पुरजोर विरोध किया, जबकि जदयू ने समर्थन कर दिया। दो दिन पहले ही जदयू के बड़े मुस्लिम नेताओं ने केंद्र के कदम का विरोध किया था। विरोध करने वाले मुस्लिम नेताओं के फजीहत हो गई है। कहा जा रहा है कि ये इतना बड़ा मुद्दा है कि इस सवाल पर जदयू के कई नेता पार्टी से इस्तीफा दे सकते हैं। इधर राजद ने कहा कि जदयू का मुस्लिम विरोधी चेहरा बेनकाब हो गया है। पार्टी के प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने कहा कि नीतीश कुमार ने भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति के सामने सरेंडर कर दिया है।
वक्फ एक्ट में संसोधन के सवाल पर केंद्र सरकार फंस गई है। भारी विरोध के कारण पहली बार सरकार ने बिल के जेपीसी के पास भेजने का निर्णय लिया। इससे पहले मोदी सरकार विपक्ष की जेपीसी की मांग हमेशा खारिज करती रही है। वह संख्या बल के जोश में हर बिल पास करती रही है। कृषि विरोधी तीन काले कानून को भी जेपीसी में नहीं भेजा था और बिना बहस के पास कर दिया था। सौ से अधिक सांसदों को सस्पेंड किया, लेकिन कभी जेपीसी की मांग स्वीकार नहीं की।
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वक्फ बोर्ड संसोधन बिल का कई दलों ने किया विरोध
इस बार नई बात यह है कि भाजपा को अकेले बहुमत नहीं है। वह एनडीए के घटक दलों के समर्थन पर टिकी है। एनडीए के कई दलों ने कानून पास करने से पहले जेपीसी में भेजने की मांग कर दी। लोजपा के चिराग पासवान ने भी जेपीसी में भेजने की मांग की। सरकार को समर्थन दे रहे सबसे बड़े दल टीडीपी ने भी जेपीसी की मांग कर दी थी। इस हालत में मजबूर हो कर सरकार जेपीसी में भेजना पड़ा। विपक्ष का कहना है कि वक्फ एक्ट में संसोधन का मकसद मुस्लिमों की सामूहिक संपत्ति पर सरकारी नियंत्रण कायम करना है। मालूम हो कि वक्फ के पास करीब नौ लाक एकड़ जमीन है और लाखों करोड़ की संपत्ति है। इस संपत्ति पर भू-माफिया की भी नजर है।
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