चुनाव के बाद क्या होगी लालू प्रसाद यादव की भूमिका ?

लेखक
ज़ैन शहाब उस्मानी
Columnist, Political Analyst

एक बात तो मैं निसंदेह कह सकता हूँ कि राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव बिहार के सबसे बड़े करिश्माई नेता हैं. लालू यादव के राजनीतिक जीवन में आये तमाम उतार चढ़ावों के बावजूद बिहार में उनकी लोकप्रियता अब भी बनी हुई है.

भले ही इस समय लालू यादव की पार्टी पिछले 15 सालों से सत्ता से बहार हैं लेकिन अगर आप बिहार की राजनीति में पिछले 3-4 विधानसभा चुनाव और 3 लोकसभा चुनाव में राजद का वोट शेयर प्रतिशत देखेंगे तो उस से समझ आता है कि लालू यादव की पकड़ आज भी समाज के जड़ तक है.

आज भी जब आप विशेषकर यादवों और मुस्लिम समुदाय के लोगों से बात करेंगे तो वह बिना कुछ सोचे सीधे लालू यादव को अपना नेता मानते हैं। MY समिकरण (M- मुस्लिम, Y- यादव) की राजनीति को लालू यादव ने कई चुनाव में साबित भी किया है। इसी वजह से हम यह कह सकते हैं कि आज भी लालू यादव बिहार के मतदाताओं से डायरेक्ट कनेक्शन रखते हैं इस मामले में किसी और नेता का लालू यादव की जगह ले पाना असंभव है।

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव फिलहाल दिसम्बर 2017 जेल में है और रांची स्थित रिम्स में इलाजरत हैं. अभी इस समय बिहार में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं लेकिन कल ही उनकी ज़मानत याचिका पर सुनवाई भी होनी है. लालू के बारे में बिहार में अभी जो चर्चाएं चल रही हैं उनमें यह बात भी उठ रही है कि चुनावों के बाद लालू यादव किस भूमिका में होंगे ?

आज भी बिहार के 243 विधानसभा में से किसी भी सीट से अगर किसी भी प्रत्याशी को राजद का टिकट मिल जाता है तो प्रत्याशी को लालू यादव की पार्टी से चुनाव लड़ने के एवज में लालू के चाहने वालों का अच्छा खासा वोट मिल जाता है.

जिस मंडल आंदोलन की राजनीति से लालू यादव की राजनीति का उदय होता है और 1990 में जब लालू मुख्यमंत्री बने तब लालू यादव के साथ नीतीश कुमार, शरद यादव और रामविलास पासवान भी थे लेकिन सबसे पहले 1993 में नीतीश कुमार ने अलग होकर जार्ज फर्नांडीस के अगुवाई में समता पार्टी का गठन किया फिर 1997 में शरद यादव और रामविलास पासवान ने भी लालू का साथ छोड़ दिया। इसके बावजूद लालू राजनीति में आगे बढ़ते रहे और कांग्रेस सरकार में रेल मंत्री भी रहे.

2010 विधानसभा चुनाव में लालू यादव की पार्टी अबतक के इतिहास में सबसे कम केवल 19% प्रतिशत वोट शेयर के साथ 22 सीट जीतने में कामयाब हो पाई। लेकिन लालू की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं हुई. आज भी अगर लालू कहीं पर आये तो तमाम लोग चाहे समर्थक या विरोधी सभी उन्हें सुनने के लिए जाते हैं.

मुस्लिम मतदाताओं के बीच नीतीश कुमार को लेकर संकोच 2005 से ही था. उस संकोच को नीतीश कुमार कम करने में काफी हद तक कामयाब हुए थे लेकिन नागरिकता संशोधन विधेयक, तीन तलाक़ और कश्मीर से 370 और 35A जैसे विधेयकों पर नीतीश कुमार के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन की वजह से राज्य का मुस्लिम समुदाय ने फिर से नीतीश कुमार से दूरी बना ली. अब तो यह स्पष्ट हो चूका है कि नीतीश कुमार को अब मुस्लिम समुदाय का पहले जैसा समर्थन हासिल नहीं है. आज मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार चुनाव 2020 के बाद सक्रिय राजनीति को अलविदा कहने का इरादा भी ज़ाहिर कर दिया है.

ऐसे में बिहार की राजनीति में एक खालीपन नज़र आ रहा है. लालू यादव जो देश एवं बिहार की राजनीति के किंगमेकर भी रहे हैं उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है. सिर्फ इतना ही नहीं लालू यादव द्वारा रेल मंत्री के कार्यकाल में रेलवे के कायाकल्प पर विदेशों में भी खूब चर्चा हुई और लालू ने विदेश जाकर मैनेजमेंट के छात्रों को प्रबंधन के गुर भी सिखाये.

जहाँ एक तरफ लालू एक माहिर राजनीतिज्ञ हैं वहीँ बिहार की संभावनाओं, संस्कृति और जीवन जैसे मुद्दों पर गहरी जानकारी रखते हैं. ऐसे में यह सवाल उठाना लाज़मी है लालू किस भूमिका को पसंद करेंगे ?

By Editor