रघुवंश प्रसाद सिंह की लेटर पॉलिटिक्स के पीछे कौन है?
रघुवंश प्रसाद सिंह की लेटर पॉलिटिक्स की रणनीति पर गौर करने से यह स्पष्ट होता है कि उनकी इस मुहिम में वह अकले नहीं हैं. कोई है जो उन पर नैतिक व भावनात्मक दबाव बनाने की क्षमता रखता है और एक खास रणनीति के तहत इस मुहिम को आगे बढ़ा रहा है. हमें इस मुहिम को समझने के पहले रघुवंश प्रसाद सिंह की चिट्ठियों के तकनीकी पहलुओं को समझने की जरूरत है.
रघुवंश प्रसाद सिंह ( Raghuvansh Prasad Singh) ने पहले राजद के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था. फिर उन्होंने हाथ से एक सादे पेज पर लिखी चिट्ठी में इस्तीफा दिया. अब तक उन्होंने चार चिट्ठिया जारी की हैं. चारों चिट्ठियां दस सित्म्बर को लिखी गयी हैं. लेकिन चारों में से कुछ चिट्ठियों को अलग-अलग समय और अलग-अलग तारीखों को फेसबुक पर अपलोड किया गया.
पहली चिट्ठी
पहली चिट्ठी दस सितम्बर को शाम 5.37 मिनट पर फेसबुक पर अपलोड किया गया. इस पत्र में रघुवंश प्रसाद सिंह ने इस्तीफा की घोषणा की है. लेकिन खास बात यह है कि यह पत्र सादे कागज पर लिखा गया है. इस पत्र के लिए उन्होंने अपने आधिकारिक लेटर पैड का इस्तेमाल नहीं किया. जबकि अन्य चिट्ठियां भी दस सितम्बर को ही लिखी गयी. दस सितम्बर को ही बाकी चिट्ठियां आधिकारिक लेटर पैड पर लिखी गयी हैं. ऐसे में सवाल होता है कि इस्तीफा वाली महत्वपूर्ण चिट्ठी सादे कागज पर क्यों लिखी गयी? इस सवाल का संभावित जवाब यह हो सकता है कि जब उन्होंने चिट्ठी लिखनी चाही होगी, या उन पर इस्तीफा देने का दबाव बनाया होगा, तो उस समय उनके पास लेटर पैड नहीं रहा होगा. और उस दबाव में उन्होंने सादे कागज पर टेढ़े मेढ़े शब्दों में इस्तीफा लिख डाला होगा.
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दूसरी चिट्ठी
रघुवंश बाबू ने दूसरी चिट्टई काफी रणनीतिक कौशल से लिखी है. यह चिट्ठी मुख्यमंत्री, बिहार के नाम है. इस चिट्ठी में उन्होंने आम किसानों के लिए मनरेगा नियम में बदलाव समेत अन्य पालीसीज में बदलाव की बात की है. मजे की बात है कि यह पत्र आधइकारिक लेटर पैड पर लिखा गया है. इस पत्र को भी फेसबुक पर दस सितम्बर को ही अपलोड किया गया है. लेकिन इस्तीफे वाली चिट्ठी के करीब तीन घंटे बाद यानी रात के आठ बज कर 14 मिनट पर इसे अपलोड किया गया है.
अब गौर करने की जरूरत है कि इस्तीफे के महज तीन घंटे बाद दूसरी चिट्ठी मुख्यमंत्री के नाम भेजी गयी. इसके पीछे संभव है कि नीतीश से सम्पर्क करके राजद पर दबाव बनाने की रणनीति रही होगी. ध्यान देने की बात है कि जब रघुवंश प्रसाद ने इस्तीफे की चिट्ठी फेसबुक पर पोस्ट की और यह चिट्ठी मीडिया में घूमने लगी तो तुरत राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने जवाबी चिट्ठी जारी की. जिसमें उन्होंने कहा कि “रघुवंश बाबू आप कहीं नहीं जा रहे हैं, समझ लीजिए”. ध्यान रहे कि लालू प्रसाद की चिट्ठी के तुरंत बाद, रघुवंश प्रसाद के फेसबुक पेज से नीतीश के नाम की चिट्ठी जारी कर दी. गौर यह भी करने की जरूरत है कि जब चिट्ठियों को अपलोड किया गया तो उस समय रघुवंश प्रसाद सिंह दिल्ली के एम्स में आईसीयू में थे. स्वाभाविक है कि उनकी चिट्ठी फेसबुक पर कोई और अपलोड़ कर रहा था. बताया जाता है कि यह काम उनके इंजीनियर पुत्र कर रहे थे.
इंजीनियर पुत्र की भूमिका पर आगे की पंक्तियों में चर्चा होगी.
तीसरा पत्र
तीसरा पत्र सिंचाई मंत्री के नाम पर है. इस पत्र का उल्लेख यहां बहुत महत्वपूर्ण नहीं है.
चौथा पत्र
चौथा पत्र ‘संदर्भ’ शीर्षक से जारी किया गया है. इसे पत्र न कह कर प्रेस वक्तव्य कहना ज्यादा उचित होगा. क्योंकि इस पत्र में रघुवंश प्रसाद सिंह ने राजनीति में आ रही गिरावट का जिक्र किया है. इसमें उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया है. लेकिन धर्म, राजनीति और लोकतंत्र की चर्चा की है. कुछ नेताओं द्वारा टिकट की बिक्री की बात की गयी है और गांधी, कर्पूरी, अम्बेडकर आदि नेताओं को याद दिलाते हुए कहा गया है कि उनके (आदर्शों) फोटो की जगह एक परिवार के लोगों की तस्वीरें बैनरों पर लगाई जा रही हैं. रघुवंश प्रसाद ने इसे राजनीति की गिरावट की संज्ञा दी है और वंशवाद, सामंतवाद, साम्प्रदायवाद का कड़ा विरोध किया है.
इस लेटर पॉलिटक्स के मायने को समझने का शाब्दिक अर्थ तो केवल इतना है कि राजद से नाराज रघुवंश प्रसाद सिंह पार्टी के क्रियाक्लाप से नाराज हैं. पर इस लेटर पॉलिटक्स का राजनीतिक लाभ लेने की रणनीति भी समानांतर तौर चलती दिख रही है, जिसमें संभव है कि रघुवंश प्रसाद डायरेक्ट इंवाल्व ना हों.
पर बताया जाता है कि रघुवंश प्रसाद सिंह के इंजीनियर बेटे की राजनीतिक महत्वकांक्षा पिछले कुछ दिनों में काफी बढ़ी है. एक सूत्र का कहना है कि लाकडाउन के दौरान उन्होंने एक निजी कम्पनी में उंची सैलरी की नौकरी छोड़ दी है. (यह भी संभव है नौकरी छूट गयी हो). कुछ राजनीतिक जानकार यह मानते हैं कि इस लेटर पालिटक्स के पीछ रघुवंश प्रासद के बेटे की महत्वपूर्ण भूमिका है.
राजद के इस पूरे मामले में चुप्पी एक रणनीतिक चुप्पी के तौर पर देखी जा रही है.