शाहबाज़ की विशेष रिपोर्ट

बिहार में बीजेपी पिछले पंद्रह वर्षो से नीतीश कुमार के साथ सत्ता में भागीदार है, 2020 बिहार चुनाव में भी पार्टी नीतीश कुमार के चेहरे के सहारे चुनावी मैदान में उतरेगी। आखिर कब तक जदयू की पिछलग्गू बनी रहेगी बीजेपी ?

2014 एवं 2019 लोक सभा चुनावो में बड़ी जीत दर्ज करने के बाद भी बीजेपी बिहार में आत्मनिर्भर नहीं दिखती है। 2020 बिहार विधान सभा चुनाव में भी बीजेपी जदयू के छोटे भाई की भूमिका में है। यह साफ़ है की की 2015 बिहार चुनाव के नतीजों ने भारत की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी के आत्मविश्वास को हिला कर रख दिया जिससे पार्टी अभी तक उबर नहीं पायी है।

बिहार विधान सभा चुनाव 2020 का बिगुल बज चूका है। तमाम राजनितिक पार्टियां वोटरों को लुभाने में लगी हुई है। लेकिन बिहार में NDA गठबंधन की प्रमुख पार्टी बीजेपी के पास कहने को कुछ ख़ास नहीं है सिवाय नरेंद्र मोदी के । पार्टी के चुनावी पोस्टरों में भी बिहार में बीजेपी के कामो का कोई उल्लेख नहीं है एवं यह जदयू के सुशाशन के भरोसे दिखती है. हलाकि बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा किये गए कामो को ही बिहार में प्रचारित कर रही है।

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याद दिला दें की 2010 बिहार विधान सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने कुल 102 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमे से 98 सीटों पर जीत हासिल की थी। जबकि जदयू ने 141 में से 115 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
2015 चुनाव परिणाम बीजेपी के लिए निराशाजनक रहा जिसके बाद ऐसा लगता है की भारतीय जनता पार्टी ने अपने दम पर चुनाव लड़ने से तौबा ही कर ली। देशभर में हिंदुत्व की लहर के बावजूद बीजेपी सिर्फ 53 सीटों पर सिमट कर रह गयी जबकि पार्टी ने 157 सीटों पर चुनाव लड़ा था।

2015 के हश्र से अभी तक उबर नहीं पायी है बीजेपी

2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बीजेपी को लगा था कि वह बिहार में अकेले सरकार बना सकती है, लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ जिस तरह राज्य के सभी पिछड़े और दलित एकजुट हो गये और उससे पार्टी तीसरे नंबर पर आ गयी। इस नतीजे ने भारतीय जनता पार्टी के आत्मविश्वास को गहरा धक्का दिया जिससे भारत की सबसे बड़ी पार्टी कहे जाने वाली बीजेपी अभी तक नहीं उबर पायी है।

जानकारों की माने तो बिहार में लंबे समय तक प्रयास करने के बावजूद बीजेपी राज्य के पिछड़े वर्ग में खास कर अति पिछड़ा समुदाय और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच अपनी पकड़ नहीं बना पायी है। बिहार में बीजेपी के सीमित वोटर है जिनमे उच्च जाति के वोटरों की संख्या अधिक है। इसी वजह से वह बिहार में नीतीश कुमार पर आश्रित है.

नीतीश-लालू के कद का चेहरा नहीं

बिहार में बीजेपी के पास कोई कद्दावर नेता नहीं है, जो नीतीश कुमार और लालू यादव की बराबरी का हो। सुशील मोदी जो बिहार के उपमुख्यमंत्री है लेकिन वह नीतीश कुमार के पिछलग्गू की तरह दिखाई देते हैं। बिहार में धर्म से ज्यादा जातीय राजनीति हावी रही है. बीजेपी के पास लालू यादव के माय (muslim+yadav) और नीतीश कुमार के जातीय समीकरणों का अभी तक कोई जवाब नहीं है।

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मजबूरी में साथ जेडीयू-बीजेपी

बिहार में बीजेपी के लिए नीतीश कुमार जरूरी हैं. वहीं, नीतीश कुमार 2017 में महागठबंधन से अलग होकर भाजपा के ऊपर निर्भर दीखते है।
इसलिए बीजेपी किसी भी सूरत में नीतीश का साथ नहीं छोड़ना चाहती है, क्योंकि वह अकेले चुनावी मैदान में आकर कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती है।

पार्टी के विश्वस्त सूत्र कहते है की बीजेपी 2020 बिहार विधान सभा चुनाव में एक बड़ी ताकत बन कर उभरेगी. बीजेपी नेता एवं केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने दावा किया है की NDA बिहार में 220 सीटों पर जीत हासिल करेगी एवं नीतीश कुमार ही अगले मुख्यमंत्री होंगे. उन्होंने यह भी कहा की बिहार की जनता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के किए गए कामों का इनाम देगी. उन्होंने यह दावा भी किया कि NDA में सीट बटवारे को लेकर कोई विवाद नहीं है।

गौरतलब है की 2014 एवं 2019 लोक सभा चुनावों में बड़ी जीत हासिल करने बाद भी बीजेपी शायद बिहार में अकेले जीत हासिल करने का फार्मूला तलाश करने में विफल रही है. अब यह देखना दिलचस्प होगा की पार्टी इस बार भी बिहार में एक बड़ी ताकत बन कर उभरती है या इसका हश्र फिर से 2015 चुनाव की तरह होगा , ये देखने योग्य बात होगी.

By Editor


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