भारत बंद विफल करने के लिए हड़बड़ी में करवा दी चुनावी घोषणा
NDA सरकार ने चुनाव आयोग को का सियासी इस्तेमाल किया. उसने भारत बंद की खबर दबाने के लिए बिना तैयारी चुनाव आयोग से बिहार चुनाव की घोषणा करवा दी.
चुनाव आयोग सोमवार को चुनाव की घोषणा करना करने वाला था. अभी तक चुनाव की तारीखों के ऐलान के लिए पूरी तरह से ड्राफ्ट भी तैयार नहीं था.
लेकिन ठीक उसी समय जब किसान विरोधी कानून के खिलाफ तमाम किसान संगठन और विपक्ष भारत बंद के लिए आंदोलन चला रहे थे तभी अचानक चुनाव आयोग ने हड़बड़ी में प्रेस कांफ्रेंस का ऐलान कर दिया और 12.30 में मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अड़ोरा ने प्रेस कांफ्रेंस शुरू कर दी.
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देखते ही देखते सारे न्यूज चैनल भारत बंद की खबरों को छोड़ कर चुनाव आयोग की प्रेस कांफ्रेंस को लपक लिये.
चुनाव आयोग किस तरह से केंद्र की कठपुतली बन चुका है. आज की प्रेस कांफ्रेंस से यह बात साफ स्पष्ट हो जाती है. अगर आप सुनील अड़ोरा की प्रेस कांफ्रेंस में बॉडी लैंग्वेज पर गौर करें तो उससे साफ हो जाता है कि मुख्य चुनाव आयुक्त मानसिक तौर पर इसके लिए तैयार नहीं हैं. प्रेस बयान को पढ़ते समय वह बार बार हिचक रहे हैं. बीच में सवाल करने पर वह पटरी से उतर जा रहे हैं और बयान को रिपीट कर रहे हैं.
पहले यह खबर थी कि रविवार को प्रधान मंत्री मन की बात करेंगे. माना जा रहा था कि चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद चुूंकि आचार संहिता लागू हो जाती है ऐसे में केंद्र सरकार भी यही चाहती थी कि सोमवार को चुनाव की तारीखों की घोषणा की जायेगी. लेकिन जब देश भर के किसान संगठन और विपक्षी पार्टियां भारत बंद के लिए सड़कों पर उतर चुके थे ठीक उसी समय चुनाव आयोग ने अति आवश्यक प्रेस कांफ्रेंस की शुरुआत कर दी. जिसका नतीजा यह हुआ कि देश भर का मीडिया बंद की खबरों को छोड़ कर चुनाव आयोग की प्रेस कांफ्रेंस को कवर करने में जुट गये.
सवाल यह उठता है कि चुनाव आयोग ने एक बार फिर अपनी स्वायित्तता को सदंगिग्ध कर दिया है. आखिर चुनाव की तारीखों की घोषणा अचानक इतनी हड़बड़ी में करने की जरूरत क्यों पड़ी.
यह कहा जा सकता है कि केंद्र सरकार ने चुनाव आयोग पर दबाव बना कर भारत बंद के दौरान ही चुनाव की तारीखों का ऐलान करा कर मास्टर स्ट्राक खेलने की कोशिश की है. इसमें वह सफल भी रही है.