क्या रमेश यादव को अपनी हत्या का आभास था- हक की बात
पूर्वी चम्पारण के छौड़ादानो के उप प्रमुख पति रमेश यादव से मेरी आखिरी मुलाकात जुलाई 2021 की चिलचिलाती गर्मियों में हुई थी. रमेश ने बड़ी गर्व से मुझसे आग्रह किया कि मैं मटर चौक स्थित उनके नवनिर्मित घर को देखने चलूं.
चूंकि कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण मैं अपने पैतृक गांव करीब दो वर्ष बाद गया था. इसी बीच उनका मकान बना था.उनके इस आत्मीय भाव और प्रेम को महसूस कर मैंने सहजता से उनके आग्रह को स्वीकार कर लिया.
उनका घर एक मार्केट कम्पलेक्स के रूप में बनाया गया है. उन्होंने एक-एक दुकान मुझे दिखाया. और अंत में उस कमरे में हमें ले गये जहां वह खुद रहते थे. एक छोटे से कमरे में एक चौकी और चंद कुर्सियां लगी थीं. तब अचानक मेरी नजर दीवार पर लगे एलईडी स्क्रीन पर पड़ी. वह स्क्रीन सीसीटीवी का था.
सुरक्षा के लिए चिंतित थे रमेश
सीसीटीवी देख कर मैं चौंक गया. दूरदराज गांव के किसी घर में सीसीटीवी को होना मेरे पत्रकार मन में कई सवाल खड़े कर गया. सीसीटीवी , जाहिर है सुरक्षा कारणों से जुड़ा होता है. इन सब के बावजूद मैंने रमेश से सीसीटीवी पर कोई सवाल नहीं किया. लेकिन इतना तो समझ ही गया कि रमेश जी को अपनी सुरक्षा की चिंता है. बातचीत के क्रम में उन्होंने बताया कि उन पर पहले से जो केस चल रहे थे सब खत्म हो चुके हैं. उन्होंने बताया कि उन पर चलने वाले केस कोई ज्यादा गंभीर प्रवृत्ति के थे भी नहीं उनकी इन बातों पर मैंने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. लेकिन मैं महसूस कर रहा था कि वह अपनी सुरक्षा के प्रति काफी सजग हैं. हमारी बातचीत अभी चल ही रही थी कि इसी दौरान एक पुलिस वाला, वर्दी में वहां पहुंचा. संभवत:यह पुलिसकर्मी असिसटेंट सब इंस्पेक्टर के स्तर का रहा होगा. उस पुलिस कर्मी को रमेश जी ने आत्मीयता से स्वागत किया. लेकिन उस पुलिसकर्मी का वहां आना मेरे लिए असहजता का कारण था. क्योंकि उसके आने से रमेश का ध्यान पुलिसकर्मी पर केंद्रित था. इसलिए मैंने बिना समय गंवाये वहां से विदा ले लिया.
लेकिन मैंने महसूस किया कि रमेश के पास पुलिस वाले का आना-जाना उन दोनों के बीच व्यावहारिक संबंधों के कारण होगा. जो लोग पत्रकारिता से जुड़ें हैं वह जानते हैं कि आईबी के अफसरान पत्रकारों से अपने संबंध मजबूत बनाते हैं. क्योंकि उन्हें अपने सूत्र मजबूत करने होते हैं. इसी तरह समाज में सक्रिय लोगों और खास कर जिन का संबंध किसी न किसी रूप में अपराध जगत से हो या कभी रहा हो, से पुलिस वाले अनुसंधान आदि में मदद की उम्मीद रखते हैं. मैं रास्ते में इन्ही बातों पर सोचता रहा.
अब आइए जरा उन बिंदुओं पर गौर करते हैं जिन परस्थितियों में रमेश पर गोलियां चलाई गयीं. घटना के बाद अनेक लोगों ने मीडियाकर्मियों से बात करते हुए आरोप लगाया कि गोली चलने के वक्त या उसके कुछ पल आगे या पीछे वहां पुलिस थी. हालांकि मैं उन दावों की तस्दीक नहीं करता लेकिन यह बात अगर सही है तो पुलिस की भूमिका पर अगर आम लोग सवाल खड़े कर रहे हैं तो इसे इग्नोर भी नहीं किया जा सकता.
मेरे लिए रमेश यादव की पुरानी छवि महत्वपूर्ण नहीं है. उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से अपनी पत्नी संगीता देवी को पंचायत समिति के चुनाव में जितवाया था. और बाद में वह उपप्रमुख भी बनीं. ऐसे में एक जन प्रतिनिधि की हत्या चिंता का विषय है. नवम्बर 2021 में पंचायत चुनाव के बाद मात्र पांच महीने में बिहार में 18-20 प्रतिनिधियों की हत्या की जा चुकी है. प्रतिनिधियों की हत्या लोकतंत्र के लिए गंभीर चुनौती की बात है.
कुछ लोगों को भले ही रमेश की पुरानी छवि को ले कर आपत्ति होगी. लेकिन मेरा मानना है कि हिंसा और हत्या समाज में वैमनस्य उत्पन्न करते हैं और इससे समाज में अशांति का सिलसिला चलता है. रमेश हमारे न सिर्फ ग्रामीन थे बल्कि उनके पूर्वज भी हमारे वालिद साहब से मिलते जुलते रहते थे. हमराी सहानुभूति रमेश के बच्चों और पत्नी के प्रति है. मैं अल्लाह से दुआ करता हूं कि उन्हें इस संकट से आगे निकलने की कुअत दे.