एक बदनशीब मां अपनी बेटी की तस्वीर लिए साहरघाट के बाजार में यह कहते हुए लोगों से मदद की गुहार लगा रही थी कि उसकी बेटी की शादी गरीबी की वजह से नहीं हो रही है.
मधुबनी से दीपक कुमार
भीख मांग कर बेटी के हाथ पीले करने के लिए भिक्षाटन में लगी यह यह मां हाथ में अपनी जवान लड़की की तस्वीर लिए हर दुकान पर जाकर लोगों से मदद के तौर पर पैसे मांग रही थी.सड़क पर भी आते-जाते लोगों से मदद मांग रही थी.कोई पांच तो कोई दस का नोट उसके हाथों में थमा आगे निकल जा रहा था.कोई कुछ भी नहीं दे उसे देख निकल जा रहा था
.एक शख्स ने जब उसका वीडियो बनाते हुए उसका पता जानना चाहा तो वह कुछ भी साफ-साफ बताने से बचती रही.गांव का नाम रामपुर लेकिन जिला का नाम पूछने पर कुछ नहीं बता पायी.बहुत कुरेदने पर उसने अपना नाम रीता और पति का नाम उपेन्द्र शर्मा बताया. सवालों से दो-चार होने के बजाय मुट्ठी में नोटों को दबाते हुए तेज कदमों से आगे निकल गयी.किस्मत के हाथों की कठपुतली बनी रीता एक मां के फर्ज को अंजाम देने के लिए दुनियां का सबसे अभिशप्त काम कर रही है . जिस तरह सवालों का जवाब देने से वह बचने का प्रयास करती रही.
यह एक ऐसा चुभता सवाल था,इस सवाल से महिला के सम्मान का तार जुड़ा था. अगर उसकी बेटी कुंवारी है और उसकी माली हालत अपनी बेटी के हाथ पीले करने की नहीं है,तो उस अबला की मदद न सिर्फ आम लोगों को बल्कि सरकार को भी ऐसी अभागन की मदद करनी चाहिए। सचमुच एक अभागन मां अगर बेटी की शादी के लिए सड़कों पर जवान बेटी की तस्वीर लिए भीख मांगने को मजबूर हो,तो “बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ” जैसे नारे कम-से-कम रीता जैसी मां के लिए किसी गंदी गाली से कम नहीं है