भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने आज पीएनबी घोटाला प्रकरण में केंद्र सरकार से 10 अहम सवाल पूछा और कहा कि नीरव मोदी प्रकरण ने देश की बैकिंग व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी. वहीं, केंद्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली ने इसके लिए ऑडिटर्स और बैंक प्रबंधन को जिम्मेवार ठहहराया है.
नौकरशाही डेस्क
यशवंत सिन्हा ने पूछा कि यदि नीरव मोदी का घोटाला 2011 में शुरू हुआ था, तो बताया जाए कि हर साल कितने लेटर ऑफ अंडरस्टैंडिंग (LoU या एलओयू) जारी किए गए ? प्रत्येक एलओयू की राशि बताई जाए. एलओयू कितनी अवधि के लिए वैध था – 90 दिन, 180 दिन, 365 दिन या उससे भी ज़्यादा. हर एलओयू पर विदेशी बैंकों से कितनी राशि निकली? कितने मामलों में एलओयू की रकम पीएनबी को वापस लौटी? कितने एलओयू की गारंटी पीएनबी को नहीं लौटाई गई?
उन्होंने पूछा कि अगर किसी विदेशी बैंक ब्रांच को समय पर पैसे नहीं मिले तो क्या उसने पीएनबी को ख़बर दी? कितने मामलों में बक़ाया वसूली के लिए पीएनबी की गारंटी का इस्तेमाल किया गया? क्योंकि इस में विदेशी मुद्रा का ट्रांजेक्शन भी शामिल था, तो आखिर ये आरबीआई की निगाह से ये लेनदेन बचा कैसे रह गया? नीरव मोदी ने 200 शेल कंपनियां बनाई थीं, जिनके ज़रिए लेनदेन हुआ. ऐसे में सरकार के दावे का क्या हुआ कि नोटबंदी के बाद ऐसी सारी फ़र्ज़ी कंपनियां बंद हो गई हैं? जांच एजेंसियां तुंरत ही नीरव मोदी की जब्त की गई संपतियों को कैलकुलेट कर सकती हैं तो फिर वे साधारण जानकारियां क्यों नहीं साझा कर रही हैं? और अंत में, इस कन्फ्यूजन से किसे फायदा हो रहा है?
वहीं, इस प्रकरण में अपनी चुप्पी तोड़ते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा कि ऑडिटर्स और प्रबंधन की विफलता के कारण इतना बड़ा घोटाला हो गया. 6 साल की ऑडिट में यह घोटाला क्यों नहीं पकड़ा गया? उन्होंने कहा कि ऑडिट टीम से इस बारे में पूछताछ भी की जाएगी. बैंकों का प्रबंध तंत्र अपनी जिम्मेदारी पर खरा नहीं उतरा है, क्योंकि वे यह पता करने में विफल रहे हैं कि उनके बीच में वे कौन हैं जो गड़बड़ी करने वाले हैं. निगरानी एजेंसियों को यह पता लगाने की जरूरत है कि अनियमिताओं को पकड़ने के लिए किस तरह की नयी प्रणालियों को अपनाया जाना चाहिए. बैंकिंग प्रणाली के साथ धोखाधड़ी करने वालों बख्शा नहीं जाएगा और सरकार उसे पकड़कर ही रहेगी.