अमिताभ कृष्ण देव
आत्मा परमात्मा के मिलन को योग कहते हैं। आत्मा का परमात्मा में विलय को योग कहते हैं। योग का शाब्दिक अर्थ है ‘जुड़ना’। भारतवर्ष में यह विद्या प्राचीन काल से है, जो ऋषि-मुनियों की देन है। कुछ वर्ष पूर्व तक योग को जानने वालों की संख्या बहुत कम थी, आज योग को लगभग सभी लोग जानते हैं। आम लोगों में यह धारणा है कि योग के नियमित अभ्यास से उत्तम स्वास्थ्य लाभ होता है, इस प्रकार योग को शारीरिक स्वास्थ्यता तक ही सीमित कर दिया गया किंतु इसका सर्वोच्च एवं सर्वोत्तम लाभ ईश्वर से जुड़ने की क्रिया से है, आत्मनुभूति से है। योग के विभिन्न प्रकार हैं, इसमें से एक क्रिया योग है। जिसे भगवान कृष्ण ने अर्जुन को प्रदान किया था, जिसकी व्याख्या भगवत् गीता, अध्याय 4 ,श्लोक 1,2,3 में मिलती है। इस परम एवं अमर विद्या को भगवान कृष्ण ने अर्जुन के लिए ही नहीं बल्कि सभी सच्चे एवं इच्छुक भक्तों के लिए दिया था। एक सच्चा योगी धर्म की सीमितताओं से, बंधनों से ऊपर उठ जाता है। उनका एक ही धर्म होता है, परमात्मा से मधुर संबंध स्थापित करना और परमात्मा के द्वारा बनाए गए सभी संतानों, सभी समुदाय के लोगों से, सभी जाति के लोगों से, सभी रंग के लोगों से प्रेम करना अर्थात योग हमें प्रेम करना सिखता है। यह जुड़ने की कला है ना कि तोड़ने की। प्रेम सूत्र में जुड़ने की क्रिया को योग कहते हैं।