सड़क के संघर्ष का प्रतीक माने जाने वाले बुजुर्ग नेता Yunus Lohia का इंतकाल हो गया है. वह राष्ट्रीय जनता दल की तरफ से विधान पार्षद रह चुके थे
युनू लोहिया उन गिने चुने नेताओं की कड़ी के आखिरी नेताओ में से थे जिन्होंने 1942 के आंदोलन में न सिर्फ हिस्सा लिया था बल्कि जेल भी गये थे.
विधान परिषद से प्राप्त उनके बारे में जो जानकारियां उपलब्ध हैं वह काफी रोचक हैं.
[tabs type=”horizontal”][tabs_head][tab_title]सड़के के संघर्ष का प्रतीक Yunus Lohia[/tab_title][/tabs_head][tab][/tab][/tabs]
आप देखें उनका संक्षिप्त परिचय
सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन 17 वर्ष की आयु से शुरू और देश की आजादी के लिए बढ़-चढ़कर भागीदारी। 1941 में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण। उसके बाद अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में सम्मिलित और कलकत्ता में 48 घंटे की जेल यात्रा। 11 अगस्त, 1942 में पटना केन्द्रीय कारावास में 14 माह गिरफ्तार रहे। उसके बाद फिर लाहौर में स्व.
लाला लाजपत राय की पुण्यतिथि के अवसर पर गिरफ्तार होकर 14 दिन जेल में रहे और कुछ समय हजारीबाग जेल में रहे। 1952 में कांग्रस पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा देकर डा. लोहिया के साथ सोशलिस्ट पार्टी में सम्मिलित हो गए और सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक बदलाव के लिए आजीवन संकल्पबद्ध और साथ ही साथ श्रमिकों , दलितों एवं पिछड़ों के लिए हमेशा संघर्ष। 7 मई, 2002 को बिहार विधान परिषद् की सदस्यता ली थी।
Yunus Lohia एक संघर्ष के नेता थे. उन्हें विचारधारा और सड़के संघर्ष का प्रतीक माना जाता था. उनकी ईमानदारी और विचारधारा के प्रति निष्ठा से लालू यादव इतने प्रभावित थे कि उनके पास जा कर उन्होंने विधान परिषद की सदस्यता आफर की थी लेकिन उन्होंने स्वीकार करने में काफी आनाकानी की. लेकिन बाद में वह लालू के दबाव में विधान परिषद की सदस्यता ग्रहण की.
लालू के आग्रह पर बने थे विधान पार्षद
लोहिया जीवन भर संघर्ष करते रहे. पैदल चलते थे. सबके लिए उपलब्ध रहने वाले ऐसे नेता थे लोहिया जो आम लोगों में घुले मिले रहते थे.
उनकी जनाजा आज यानी सोमवार को शाम चार बजे फुलवारी कब्रिस्तान में पढ़ी जानी है.