ज़फर कमाली को मिला बाल साहित्य का अकादमी पुरस्कार

बिहार के साहित्यकार डॉ. जफर कमाली को साहित्य अकादमी ने उर्दू भाषा में पुरस्कार के लिए चुन लिया। 2020 में प्रकाशित हुई थी बाल कविता संग्रह- हौसलों की उड़ान।

2020 में प्रकाशित बाल कविता का संग्रह “हौसलों की उड़ान ” को साहित्य अकादमी की त्रिसदस्सीय निर्णायक मंडल ने उर्दू भाषा में पुरस्कार के लिए चुन लिया। कवि डॉ. ज़फर कमाली बिहार के सीवान स्थित जेड ए इस्लामिया कॉलेज में फ़ारसी भाषा एवं साहित्य के वरीय अध्यापक हैं।

3 अगस्त 1969 को सीवान के रानीपुर गाँव में जन्मे ज़फर कमाली का असली नाम ज़फरुल्लाह है । पटना विश्वविद्यालय से उर्दू एवं फ़ारसी में स्नातकोत्तर के बाद प्रसिद्द व्यंगकार अहमद जमाल पाशा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के विषय पर पी एच डी की उपाधि प्राप्त की। पिछले 33 वर्षों से वे अध्यापन का कार्य कर रहे हैं।

डॉ. ज़फर कमाली का बहुआयामी साहित्यिक व्यक्तित्व है। शोध, व्यंगकाव्य, रुबाई लेखन और बाल कविता जैसी विविधतापूर्ण विधाओं में वह लगातार अपने लेखन से उर्दू साहित्य को सम्रृद्ध कर रहे हैं । उनकी महत्त्वपूर्ण किताबों में “मकातिब रियाज़िया” (1986), “ज़राफ़तनामा” (2005), “मुतअल्लिक़ाते अहमद जमाल पाशा” (2006), “रुबाइयाँ” (2010), “खाके जुस्तुजू(2017), ज़रबे सुख़न (2019), अहमद जमाल पाशा (2022).
बाल कविता से संबंधित ज़फर कमाली की पहली पुस्तक ” बच्चों का बाग़” (2006 ) में प्रकाशित हुई । ” चहकारें” शीर्षक से 2014 में दूसरी पुस्तक सामने आयी। बाल कविता से सम्बंधित तीसरी किताब ” हौसलों की उड़ान ” थी जो 2020 में छपी जिसे साहित्य अकादमी ने अभी अभी बाल साहित्य के पुरस्कार से पुरस्कृत किया है।

ज़फर कमाली की अनेक बाल कविताएं पाठ्य पुस्तकों में संगृहीत हैं। बिहार में बारहवीं कक्षा में उनकी व्यंग कविता “मुताशयर ” शामिल है । NCERT के द्वारा उनकी कविता “किताबें” चौथे वर्ग में शामिल है । कर्नाटक में आठवीं कक्षा में उनकी बाल कविता पढ़ाई जाती है।

बिहार के इस प्रमुख लेखक को साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित किये जाने पर प्रमुख साहित्यिक संस्था बज़्मे सदफ इंटरनेशनल के डायरेक्टर प्रो. सफ़दर इमाम क़ादरी ने कवि को बधाई दी है और साहित्य अकादमी को इस प्रमुख लेखक को पहचानने के लिए साधुवाद दिया है । उनका कहना है कि ज़फर कमाली जैसे लेखक जो भीड़ और साहित्यिक जुगाड़ के इस दौर में हाशिये पर मौजूद हैं, उन्हें पुरस्कार के लिए चुनना एक स्वस्थ परंपरा का आरम्भ है । आगे भी साहित्य अकादमी इसी तरह हक़दार लोगों को पुरस्कृत करे तो लेखकगण ज़्यादा खुश होंगे। यह पुरस्कार बिहार को मिला है इसलिए यह और भी ख़ुशी का मौक़ा है।

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