जहरीली शराब से मौत का तांडव और नीतीश के मौन का राज
जहरीली शराब से मौत के 48 घंटे में पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर देने वाली सरकार अब मौत के तांडव के बावजूद मौन रहने लगी है और जवाबदेही भी क्यों तय नहीं कर पा रही है?
जहरीली शराब से मौत के 48 घंटे में पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर देने वाली सरकार के तेवर अब नर्म पड़ चुके हैं. हाल की दो घटनाओं से ऐसा लगने लगा है कि आला अधिकारी पुलिस कर्मियों को दंडित करने के बजाये उन्हें बचाने में पूरी ऊर्जा लगा रहे हैं.
इस साल फरवरी और उसके बाद मार्च के आखिर में जहरीली शराब से कथित तौर मौत की दो घटनायें हुईं. पहली घटना मुजफ्फरपुर में हुई. यहां पांच लोग कथित तौर पर जहरीली शराब पीने से मरे. अभी दो दिन पहले नवादा और बेगूसराय में 14 लोगों की मौत हो गयी. इन मामलों में पुलिस की जिम्मेदारी तय करने में सरकार अभी तक मौन है.
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जब कि शराबबंदी कानून के तहत यह साफ स्पष्ट किया गया है कि जिस थाने के अंतर्गत जहरीली शराब से मौत की घटना होगी, उसकी जिम्मेदारी संबंधित थाने के थानाध्यक्ष पर होगी.
24 घंटे में पुलिसक्रमी सस्पेंड
याद कीजिए की शराबबंदी कानून लागू होने के महज पांच महीने में गोपालगंज में 16 लोग देसी जहरीली शराब पीने से मर गये थे. 2016 के 15 अगस्त की बात है. देश भर में कोहराम मच गया था. नीतीश सरकार ने महज चार दिन बाद यानी 19 अगस्त को 25 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया था. सरकार ने यह कार्रवाई उस कानून के तहत की थी जिसके अनुसार कहीं जहरीली शराब से मौत होती है तो इसके लिए स्थानीय थाने को जिम्मेदार ठहराये जाने का प्रावधान है. इतना ही नहीं इस घटना के बाद केस चला और संबंधित अदालत ने अवैध शराब बनाने वाले 9 मुजरिमों को फांसी की सजा सुनाई थी. साथ ही 4 महिलाओं को उम्रकैद की सजा भी सुनाई गयी थी.
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इसी तरह नवम्बर 2017 में वैशाली जिले के बराची पुलिस आउट पोस्ट के बसौली गांव में जहरीली शराब पीने से तीन लोगों की मौत हो गयी तथा दो अन्य गंभीर रूप से बीमार हो गये। इस घटना के महज 48 घंटे के बाद दो थानाध्यक्षों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया था।
इसी तरह रोहतास में अक्टूबर 2017 में पांच लोग जहरीली शराब से मरे. इसके लिए 12 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया था.
लेकिन नीतीश सरकार की शराबबंदी पर यह कार्रवाई बीते दिनों की बात हो गयी लगती है. पिछले चार वर्षों में जहरीली शराब से मरने वालों की अनेक घटनायें हो चुकी हैं. लेकिन अब अधिकारी यह स्वीकार करने को तैयार नहीं होते कि लोग जहरीली शराब पीने से मरे हैं. इसकी एक मिसाल इसी वर्ष फरवरी की घटना है. मुजफ्फरपुर के कटरा थाने के दरगाह टोली मे चार लोगों की मौत की खबर आयी. बताया गया कि ये लोग अवैध तरीके से बनायी गयी शराब पीने से मरे हैं. लेकिन पुलिस अधिकारी मानने को तैयार नहीं थे कि उनकी मौत जहरीली शराब पीने से हुई.
आंखों देखा हाल
अब ताजा मामला दो दिन पहले का है. खबर आई कि नवादा और बेगूसराय में जहरीली शराब पीने से 14 लोगों की मौत हो गयी. इस मामले में बेगूसराय के बखरी गांव की महिलाओं को एक विडियो, राजद नेता कारी शोहैब ने शेयर किया है. इसमें महिलायें बता रही हैं कि वे लोग देश शराब पीने के बाद मरे. महिलाओं को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि गांव के अनेक घरों में शराब बनायी जा रही है. पुलिस आती है. कुछ लोगों को पकड़ती है और पैसे ले कर उन्हें फिर छोड़ देती है. इस विडियो को देखने से पता चलता है कि ये वे महिलायें हैं जो गांव में अवैध शराब बनाये जाने से पूरी तरह वाकिफ हैं. लेकिन इस मामले में दो दिन बीत जाने के बाद भी अधिकारी यह स्वीकार करने से बच रहे हैं कि ये मौतें शराब के कारण हुई हैं.
इस मामले पर नेता प्रति पक्ष तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार पर सीधा हमला बोलते हुए पूछा है कि माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश जी क्या आप जानते है जहरीली शराब से कल बिहार में 14 व्यक्तियों की मौत हो गयी? क्या आप 14 लोगों की हत्या के दोषियों को बचाने के अलावा उनके लिए शोक संवेदना भी व्यक्त नहीं करेंगे? क्या अभी भी आपको लगता है बिहार में शराबबंदी है?जवाब अपेक्षित है।
एक तरफ नीतीश सरकार शराबबंदी को मजबूती से लागू करने के लिए हर हफ्ते समीक्षा बैठक करती है, दूसरी तरफ हर थाने में धड़ल्ले शराब बिकने के प्रमाण उपलब्ध हैं. शराब की सैकड़ों बोतलें जब्त किये जाने की खबरें भी आती हैं. लोग अरेस्ट भी होते हैं. उन पर कार्रवाई की भी खबरें आती हैं पर इस मामले में पुलिस की जवाबदेही तय न होने के कारण शराब का कारोबार बेरोक चल रहा है.
ऐसा में यह लाजिमी सवाल है कि शराबबंदी कानून को कामयाब करने की जिम्मेदारी जिस पुलिस बल पर है उसकी जवाबदेही तय करने में सरकार पूरी तरह नाकाम दिख रही है.