डा. राम पुनियानी ने नौकरशाही डॉट कॉम के साथ खास बातचीत में कहा है कि साम्प्रदायिकता के निशाने पर ऊपरी तौर पर तो अल्पसंख्यक होते हैं पर इसका असल लक्ष्य दलित और महिला होते हैं. उन्होंने कहा कि साम्प्रदायिकता सामंतवाद और ऊंच नीच पर आधारित समाज निर्माण की एक स्थाई विचारधारा है.
हमारे सम्पादक इर्शादुल हक के साथ बातचीत में पुनियानी ने कहा कि मौजूदा दौर में साम्प्रदायिकता को सत्ता का वर्दहस्त प्राप्त होना सबसे बड़ी चिंता की बात है.
उन्होंने कहा कि 1947 में देश विभाजन के बाद साम्प्रदायिकता की ज्वालामुखी फटी थी और उसमें लाखों लोगों की जानें गयीं थी पर तब भी राष्ट्रवाद के पर्दे में छिपी साम्प्रदायिकता इतनी खतरनाक रूप में हमारे सामने नहीं थी, जितना मौजूदा शासन व्यवस्था में है.
पुनियानी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि संस्थानों को साम्प्रदायिककरण, इतिहास और विज्ञान जैसे विषयों से रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों को जबरन जोड़ने की प्रवृति के पीछे जो मानसिकता है वह समाज में वैज्ञानिक चिंतन के लिए बड़ा नुकसानदेह है.
डा. पुनियानी का यह साक्षात्कार नौकरशाही डॉट कॉम के यूट्यूब चैनल naukarshahi media पर किस्तवार पब्लिश किया जायेगा. इसकी पहली किस्त 14 जनवरी को अपलोड होगी.
पुनियानी ने कहा कि आरएसएस से जुड़े अलग-अलग संगठन देश में नफरत के बीज बो रहे हैं और उनकी इस नफरत की सियासत को कुछ मीडिया घराने, लोगों तक परोस को समाज को तोड़ने में लगे हैं.
हालांकि पुनियानी ने इस बात पर संतोष जताया कि नफरत के इस डरावने दौर में नयी पीढ़ी के सैकड़ों युवा उसके खिलाफ अभियान में जुटे हैं. उन्होंने कहा कि दो तीन साल पहले जितनी नफरत सोशल मीडिया पर परोसी जाती थी उसे उसका प्रभावशाली जवाब नहीं मिलता था लेकिन अब उसका मुंहतोड़ जवाब उसे मिलने लगा है. उन्होंने कहा कि कार्पोरेट कम्युनलिज्म का जवाब देेने के लिए अब हर शहर में, छोटे पैमाने पर ही सही लेकिन पत्रकार डिजिटल मीडिया से देने लगे हैं जिसे लाखों लोग गंभीरता से पढ़ते-सुनते हैं.
याद रहे कि राम पुनियानी साम्प्रदायिकता के खिलाफ एक बेबाक आवाज के प्रतीक हैं. वह आईआईटी बम्बे में Biomedical Engeneering के प्रोफेसर रहे और वीआरएस ले कर 2004 से सक्रिय रूप से इसी फील्ड में सक्रिय हैं. उन्हें 2006 में इंदीरा गांधी अवार्ड फॉर नेशनल इंटिग्रेशन से सम्मानित किया जा चुका है.