भारतीय सेना के इतिहास में यह पहली बार हुआ कि सीनियरिटी के लिहाज से तीसरे पायदान पर रहे जनरल को सेनाध्यक्ष बना दिया गया. यह कहीं उस खेल का हिस्सा तो नहीं कि नम्बर दो रैंक पर रहे मुस्लिम जनरल पीएम हारिस की दावेदारी कमजोर कर दी जाये.
नौकरशाही डेस्क
लेफ्टिनेंट जनरल पीएम हारिस और लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीण बक्शी के वरिष्ठताक्रम को तोड़ा गया और जूनियर और कम अनुभवी लिफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत को कमान सौंप दी गयी. लि. ज. बक्शी को मनाने के लिए एक बीच का रास्ता भी निकाला गया. लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीण बक्सी के बारे में खबर यह आ रही है कि सरकार उन्हें देश का प्रथम चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ ( सीडीएस) बनाये जाने की तैयारी है. और इसी लिए उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं दी गयी. ध्यान रहे कि सीडीएस के पद के सृजन का पहली बार कारगिल युद्ध के बाद प्रस्ताव आया था. लेकिन इस पद पर बैठने वाले बख्सी पहले अधिकारी होंगे. सीडीएस के भूमिका सीधी रक्षा मंत्री के अधीन होगी और वह युद्ध और रणनीतिके मामलों में सीधे रक्षा मंत्री को रिपोर्ट करेगा.
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1983 में जनरल एसके सिन्हा ने दिया था इस्तीफा
हालांकि सैन्य सर्कल में इस बात की चर्चा है कि अपने कनिष्ठ अधिकारी के अधीन काम करने के बजाये ये दोनों सैन्य अधिकारी( बक्शी और हारिज) इस्तीफा भी दे सकते हैं. 1983 में ले.ज एएस वैद्य को सेनाध्यक्ष बनाये जाने पर उनसे सीनियर ले.ज एसके सिन्हा ने इस्तीफा दे दिया था. हालांकि तब सिर्फ एक अफसर को सुपरसीड किया गया था.
नियमित बारी को तोड़ते हुए तीसरे पायदान के अफसर को सेनाध्यक्ष बनाये जाने कांग्रेस नेता शहजाद पूनावाला ने नए सेनाध्यकक्ष की नियुक्ति को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर साम्प्रददायिक भेेदभाव का आरोप लगाया है। पूनावाला ने ट्वीट कर कहा कि पीएम मोदी लेफ्टिनेंट पी. मोहम्मकद हारिज को पहला मुस्लिम जनरल नहीं बनाना चाहते थे, इसलिए दो वरिष्ठ सैन्यि अधिकारियों की अनदेखी की गई. उन्होंने कहा कि अगर ले.ज. बक्शी को सेनाध्यक्ष बनाया जाता तो अगली बारी खुद ब खुद ले.ज हारिज की आती जो कि मोदी को पसंद नहीं था. पूनावाला ने यहां तक कहा कि मोदी सरकार ने आरएसएस को संतुष्ट करने के लिए साम्प्रदायिक चाल चली है.
सैन्य अधिकारियों का गिरेगा मनोबल
इस मामले में फर्स्ट पोस्ट में डेविड देवदास ने लिखा है कि लेफ्टिनेंट जनरल हारिस का मुस्लिम होना उन्हें अनुपयुक्त बना देता है, सेना जैसे उस संस्थान में जहां देश के अन्य संस्थानों से ज्यादा समावेशी माना जाता है. ले. ज. हारिज को नजर अंदाज करना राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर देश के सेक्युलर मिजाज पर प्रश्न खड़ा करता है.
टाप सैन्य अधिकारियों को नजर अंदाज करके तीसरे अधिकारी में विश्वास जताने के संबंध में फर्स्ट पोस्ट ने लिखा है कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करने के समान है. इसके अलावा केंद्र का यह कदम सैन्य अधिकारियों के मनोबल को चोट पहुंचाने वाला भी है क्योंकि ये दोनों वरिष्ठ सैन्य अधिकारी( बकशी और हारिज) अन्य जूनियर अधिकारियों के बीच हीरो के समान पूजे जाते हैं.