पिछले कुछ समय से देश के राजनीतिक विमर्श में दो शब्द उफान पर हैं , एक दलित दूसरा गाय । प्रधानमन्त्री मोदी कह रहे मुझे गोली मार दो लेकिन मेरे दलित भाइयों को छोड़ दो और देश में अस्सी प्रतिशत गौ रक्षक धंधेबाज हैं।
नवल शर्मा
क्या कहा जाए इसे ; एक दलितविरोधी कट्टर राजनीतिक दल के सर्वोच्च नेता की वैचारिक पराजय या उनका ईमानदार प्रायश्चित ! आज फिलहाल दलित की चर्चा करेंगे । जिन्हें आरएसएस की विचारधारा की समझ है वो जानते हैं की आरएसएस का कट्टर हिंदुत्ववाद उस मनुस्मृति की कोख से जन्मा है जो पुरे भारतीय इतिहास में सामाजिक विषमता और वैमनस्य की जड़ रहा है।
क्या नरेंद्र मोदी किसी दलित को आरएसएस का प्रमुख बनवा सकते हैं ? क्या आरएसएस यह घोषणा कर सकता है कि देश और समाज व्यवस्था का संचालन मनुस्मृति के बजाय भारत के संविधान से होना चाहिए? जिस दिन आरएसएस यह घोषणा कर देगी कि उसका लक्ष्य कट्टर हिंदुत्व के बजाय सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता होगा उस दिन से फिर कभी मोदी जी या किसी दूसरे भाजपा नेता को सफाई देने की जरुरत नहीं पड़ेगी। दलित खुद आगे बढ़कर उसे गले लगा लेंगे।
अगर देश के आम दलितों को बीजेपी की ऐतिहासिक कारगुजारियां बता दी जाए तो फिर मोदी जी के पास सर छुपाने की भी जगह नहीं बचेगी। खासकर गुजरात में अस्सी और नब्बे के दशक में हिंदुत्व की प्रयोगशाला गुजरात में दलितों को मुस्लिमों के सामने रखकर जैसी सामाजिक कीमियागिरी की गयी, वहां के दंगों में जिस तरह दलितों और मुस्लिमों के बीच आपस में मारकाट करवायी गयी या फिर बाबरी मस्जिद ध्वंस में दलितों और दलित नेताओं को मोहरा बनाया गया । यह संयोग नहीं था कि गोधरा दंगों में मुस्लिमों के खिलाफ लड़ने और जान देनेवाली भीड़ में सबसे आगे दलितों को ही रखा गया था।
भाजपा के तीन मुद्दे- दलित, दादरी, गाय
अगर इतिहास की गलतियों को छोड़ दिया जाए तो वर्तमान भी बहुत उत्साहजनक नहीं है । जब से मोदी जी की सरकार बनी है , दलित- दादरी और दलित-गाय जैसी युग्मक शब्दावलियाँ जीडीपी और ग्रोथ रेट को पीछे छोड़ती नज़र आ रही हैं। लग रहा विकासपुत्र की हवा निकल चुकी है और फिर से अपने पुराने जाने पहचाने एजेण्डे की ओर तेजी से लौटने की जोरदार कवायद शुरू है । लेकिन देहात में एक कहावत है की ज्यादा चालाक आदमी तीन जगह मखता है —पैर में , उसके बाद हाथ में और अंत में नाक में ।
हाल की घटनाओं से लग रहा की उत्तर प्रदेश में नाक में मखने की बारी आ गयी है । और अंत में , प्रधानमन्त्री ने अनजाने इतना तो स्वीकार कर ही लिया की देश में दलितों पर गोली चल रही, पर उनकी गोली को अपने सीने पर लेने का फ़िल्मी डायलाग मारने के बजाय अगर इतना कह दिया होता की इस देश में दलितों की सुरक्षा से कोई समझौता स्वीकार नहीं या फिर दलितों पर उठनेवाली प्रत्येक ऊँगली को तोड़ दिया जाएगा चाहे वह ऊँगली आरएसएस की हो या बजरंग दल की , तो शायद मान लिया जाता की वाकई मोदी जी बदल गए हैं ।
[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/02/naval.sharma.jpg” ]नवल शर्मा जनता दल युनाइटेड के बिहार प्रदेश प्रवक्ता है. यहां व्यक्त विचार उनका निजी है. [/author]