पटना हाई कोर्ट के एक फैसले से बिहार के अनुसूचित जाति के 76 छात्रों का डॉक्टर बनने का सपना चूर-चूर हो गया है. अदालत ने इन छात्रों के नामांकन पर यह कहते हुए रोक लगा दी कि उन्होंने न्यूनतम 40 पत्रिशत अंक प्राप्त नहीं किये.
गौर तलब है कि बिहार सरकार ने रिजर्व कटेगरी के छात्रों के लिए एमबीबीएस कोर्स में दाखिला के लिए न्यूनत अहर्ता 33 प्रतिशत रखा था. लेकिन इस मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने एमसीआई की गाइडलाइन का हवाला देते हुए कहा कि रिजर्व कटेगरी में नामांकन के लिए छात्रों को प्रवेश परीक्षा में कम से कम 40 प्रतिशत अंक हासिल करने होंगे. हालांकि बिहार सरकार ने इससे पहले यह निर्देश दिया था कि चूंकि रिजर्व कटेगरी के छात्रों में महज 49 छात्र ही 40 प्रतिशत या उससे ज्यादा अंक ला सके थे इसलिए उस न्यूनतम अंक को कम किया गया ताकि खाली पड़ी सीटें भर दी जायें. बिहार में रिजर्व कटेगरी की 125 सीटें हैं.
जस्टिस नवनीत प्रसाद सिंह और जस्टिस नीलू अग्रवाल की अदालती पीट ने अपने फैसले में सोमवार को यह भी कहा कि नामांकन से बची तमाम सीटें सामान्य श्रेणी के छात्रों को दे दी जायें.
हालांकि अदालत ने अपने इस फैसले में एमसीआई की गाइडलाइन को आधार बनाया है. गाइडलान के मुताबिक सामान्य श्रेणी के छात्रों के लिए 50 प्रतिशत और रिजर्व श्रेणी के छात्रों को नामाांकन के लिए कम से कम 40 प्रतिशत अंक हासिल करना जरूरी है.
लेकिन इस फैसले के बाद एक बार फिर यह प्रश्न बहस का मुद्दा बन जायेगा कि निजी मेडिकल कालेजों में 50-50 लाख रुपये के बूते पर एडमिशन लिया जाता है. जिन गरीबों के पास इतनी दौलत नहीं है और वे डोनेशन दे कर नामांकन लेने वाले छात्रों से प्रतिभाशाली हैं तो उनका क्या होगा?